2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) आभामंडल में
अभूतपूर्व चमक आ गई थी। देश के एक बहुत बड़े वर्ग को उनके भीतर एक 'महानायक' नजर आने लगा था।
यही कारण था कि नोटबंदी जैसी 'मुसीबत' को लोगों ने खुशी-खुशी झेल लिया। हालांकि एक बड़ा वर्ग सरकार के इस फैसले से नाराज भी था।
लेकिन, कोरोनावायरस (Coronavirus) काल की शुरुआत में मोदी यह चमकदार छवि धीरे-धीरे धूमिल होती गई। कोरोना की दूसरी लहर में हुई लोगों की मौत, अस्पतालों में बेड, इंजेक्शन, ऑक्सीजन जैसी समस्याओं के चलते 'महानायक' की छवि पर काफी नकारात्मक असर हुआ। यह चीज अब मोदी जी के चेहरे पर भी साफ पढ़ी जा सकती है। उनकी बॉडी लेंग्वेज में भी पहले जैसा आत्मविश्वास नजर नहीं आता है। आइए जानते हैं कोरोना काल में मोदी सरकार 7 बड़ी गलतियां या नाकामियां...
1. लॉकडाउन में पलायन : नि:संदेह कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन जरूरी था। लेकिन, शुरुआती दौर में सरकार ने जिस तरह लॉकडाउन लगाया, उसने लोगों को संभलने के लिए भी मौका नहीं दिया। हालांकि सरकार ने कहा था कि जो जहां हैं उनके खाने-पीने का ध्यान वहीं रखा जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। जैसे ही लोगों की जमा पूंजी खत्म हुई, राशन खत्म होने लगा, वे पैदल ही अपने-अपने राज्यों के लिए निकल पड़े।
सबसे ज्यादा पलायन महाराष्ट्र और गुजरात से देखने को मिला। इस दौरान कई लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया तो कुछ की अपने घर पहुंचने के चंद कदम पहले सांस टूट गई। सड़कों पर ऐसे दृश्य आम थे, इन दृश्यों ने मानवता को हिलाकर रख दिया। जिन लोगों ने इस स्थिति का सामना किया, उनके मन में केन्द्र सरकार को लेकर काफी आक्रोश उत्पन्न हो गया।
2. बेरोजगारी : कोरोना कॉल में रोजगार बढ़ना तो छोड़ दीजिए, लोगों के पास जो भी छोटा-मोटा रोजगार था वह भी उनसे छिन गया। फैक्टरियों और कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनियां हुईं, लोग बेरोजगार हुए। सरकार ने उन्हें अपने ही हाल पर छोड़ दिया। लोगों को 2 वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया। हालांकि कई कारखानों में ऐसी स्थितियां थीं, जहां उनको श्रमिक नहीं मिले। सरकारी नौकरियों के लिए युवाओं ने आवेदन भी किए, लेकिन कोरोना के चलते परीक्षाएं ही आयोजित नहीं हुई। मध्यमवर्गीय परिवारों की हालत और ज्यादा खराब हो गई।
अदूरदर्शिता : केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार कोरोना की दूसरी लहर का अनुमान नहीं लगा पाई और समय रहते इसकी तैयारियां नहीं हो पाईं। यदि तैयारियां की गईं होतीं तो शायद हालात इतने बुरे नहीं होते। दरअसल, पहली लहर जब उतार पर थी, हमने मान लिया था कि कोरोना चला गया है। भारत ने दूसरे देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाईं। हालांकि यह सरकार का सराहनीय प्रयास था, लेकिन आज अपने ही लोग वैक्सीन के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। उसी समय वैक्सीन का उत्पादन बढ़ा दिया जाता तो स्थितियां और अच्छी हो सकती थीं।
सरकार पर यह भी आरोप लगते रहे हैं कि उसने वैज्ञानिकों की बात नहीं मानी। पिछले दिनों एक वैज्ञानिक का इस्तीफा भी कहीं न कहीं इसी ओर इशारा कर रहा है। इसके साथ ही श्मशानों में शवों से उठती लपटें, ऑक्सीजन, इंजेक्शन एवं अन्य दवाइयों के लिए भटकते लोग, अस्पताल के बाहर बेड नहीं मिलने और इलाज के अभाव में दम तोड़ते लोगों के कारण भी लोगों के मन में सरकार को लेकर नकारात्मक छवि बनी।
हरिद्वार महाकुंभ : हरिद्वार महाकुंभ ने कमोबेश देश में कोरोना को बढ़ाने का ही काम किया। इस बड़े आयोजन को या तो सीमित किया जा सकता था या फिर सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से। इस दौरान संतों में, पुलिसकर्मियों को काफी संक्रमण के मामले सामने आए थे। अंग्रेजों के समय प्लेग फैला था, तब तत्कालीन प्रशासन ने श्रद्धालुओं को कुंभ स्थल तक नहीं पहुंचने दिया था। उन्हें स्टेशन से ही लौटा दिया था।
विधानसभा चुनाव : 4 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों ने भी कोरोना को गति दी। इन राज्यों में विभिन्न चुनावी रैलियों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन पूरी ईमानदारी से नहीं किया। रैलियों में उमड़ती भीड़ अनियंत्रित दिखाई दी। प्रधानमंत्री मोदी की रैली में ही लोग बिना मास्क के नजर आए। तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद कोरोना के ज्यादा मामले देखे गए। ऐसे में जब देश में कोरोना बढ़ रहा था, तब चुनावों को कुछ समय के टाला जा सकता था। एक हाईकोर्ट ने तो चुनाव आयोग के खिलाफ बहुत ही कड़ी टिप्पणी की थी।
महंगाई : लॉकडाउन की अवधि में महंगाई के मोर्चे पर भी मोदी सरकार नाकाम साबित हुए। सोया तेल के दाम दोगुने से ज्यादा हो गए। पेट्रोल 100 रुपए के पार पहुंच गया। इस अवधि में दाल-आटा एवं अन्य रोजमर्रा का सामान महंगा हुआ। लॉकडाउन के चलते पहले ही आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों को महंगाई के चलते ऐसे में दोहरी मार पड़ गई। जमाखोरों और मुनाफाखोरों ने भी इस आपदा में भी अवसर खोज लिया।
दूसरे लॉकडाउन में कम सख्ती : कोरोना की दूसरी लहर के बाद लगाए गए लॉकडाउन में तुलनात्मक रूप से कम सख्ती दिखाई दी। इस दौरान लोग सड़कों पर सामान्य रूप से दिखाई दिए। यदि इस दौरान थोड़ी सख्ती बरती जाती तो हो सकता था कि मामलों में और कमी आती साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों को स्वास्थ्य संबंधी तैयारियों के लिए और समय मिल जाता। साथ ही स्थितियां अनुकूल होने पर लॉकडाउन थोड़ा जल्दी खत्म किया जा सकता। इससे समाज के हर वर्ग को फायदा मिलता। क्योंकि अभी सिर्फ कुछ लोगों का ही कामकाज चल रहा है। अन्य सभी का कामकाज बंद है।