साहित्य और काव्य से प्रेम अजितजी को विरासत में मिला था और उस परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने हिन्दी के साहित्य जगत में अपना ऊंचा मुकाम हासिल किया। अजितजी ने कुछ समय कानपुर के किसी कॉलेज में पढ़ाया और फिर लंबे समय तक दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में अध्यापन कार्य करके वहीं से वे सेवानिवृत्त हुए। उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए, जैसे ‘अकेले कंठ की पुकार’, ‘अंकित होने दो’, ‘ये फूल नहीं’, ‘घरौंदा’ इत्यादि।