श्रीनगर। हर बार रक्षा बंधन से पहले ही भक्तों के सांसों की गर्मी से तेजी से पिघलता अमरनाथ यात्रा का प्रतीक हिमलिंग एक बार फिर विवाद का मुद्दा बन गया है। अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अधिकारियों ने इसके पिघलने की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया है पर कश्मीर के पर्यावरणविद इसे मानने को तैयार नहीं हैं जिनका कहना था कि क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने की अनुमति देने से ऐसा हुआ है।
पिछले कई सालों से जिस तेजी से हिमलिंग पिघल रहा है उसे रोकने की खातिर किए जाने वाले उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। दरअसल गुफा में क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने से हिमलिंग को नुकसान पहुंच रहा है क्योंकि लाखों भक्तों की गर्म सांसों को हिमलिंग सहन नहीं कर पा रहा है। श्राइन बोर्ड के अधिकारी अप्रत्यक्ष तौर पर भक्तों की सांसों की थ्योरी को मानते हैं पर प्रत्यक्ष तौर पर वे इसे कुदरती प्रक्रिया करार देते थे।
इस पर पर्यावरणविद खफा हैं। वे कहते हैं कि यात्रियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि न सिर्फ हिमलिंग को पिघलाने में अहम भूमिका निभा रही है, यात्रा मार्ग के पहाड़ों के पर्यावरण को भी जबरदस्त क्षति पहुंचा रही है। इन पर्यावरणविदों का कश्मीर के अलगाववादी भी समर्थन कर रहे हैं। सईद अली शाह गिलानी गुट ने तो यात्रा को 15 दिनों तक सीमित करने और यात्रियों की संख्या कम करवाने को मुद्दा बनाया हुआ है।
भारी भीड़ की वजह से अमरनाथ गुफा के आसपास का तापमान और बहुत बढ़ गया है, हालांकि श्राइन बोर्ड ने दावा किया था कि पिछले दो तीन साल में उन्होंने कुछ ऐसे उपाय किए हैं, जिससे गुफा तापमान ना बढ़े।
जब 28 जून को बाबा बर्फानी ने पहली बार दर्शन दिए थे तब शिवलिंग का आकार करीब 18 पुट का था और धीरे-धीरे वह अब पूरी तरह से पिघल गया है। ये पहला मौका नहीं है जब बाबा बर्फानी पहली बार अपने भक्तों से रूठे हों, इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है।