पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के बुजुर्ग अटल बिहारी वाजपेयी विराट व्यक्तित्व के धनी हैं। सही मायने में 'अजातशत्रु' का विशेषण उनके नाम के साथ लगाया जा सकता है क्योंकि पक्ष और विपक्ष दोनों ही पार्टियों में वे समान रूप से लोकप्रिय रहे हैं। अटलजी के ही एक सहायक हैं शिवकुमार शर्मा। उन्होंने काफी लंबा वक्त अटलजी के साथ गुजारा है। आखिर क्या सोचते हैं वे अटलजी के बारे में और उनकी राजनीति के बारे में।
इस सवाल पर कि क्या अटलजी से पार्टी की दशा और दिशा पर कोई चर्चा होती है, शिवकुमार कहते हैं कि वे अब भावों से अपनी बात बताते हैं। जब अटलजी को लगा कि सक्रिय राजनीति से हट जाना चाहिए, वे हट गए। 2005 में मुंबई अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी थी कि वे आम चुनाव नहीं लड़ेंगे और राजनीति में भाग नहीं लेंगे। जब तक वे स्वस्थ थे, पार्टी की चर्चाओं में भाग लेते थे।
वे अटलजी सर्वसम्मति को मानते हैं। जब सर्वसम्मति हो जाती है तो कभी मना नहीं करते। अटलजी ने एक दिन में ऊंचाई नहीं पाई थी। वे सदी के महानायक हैं। उनके जैसा नेता कोई हो ही नहीं सकता। वे मानव शिल्पी थे और मान्यता के लिए उसमें प्राण प्रतिष्ठा भी करते थे। ऐसा व्यक्ति सदी में कभी-कभी ही पैदा होता है। अटलजी आडवाणी ने पार्टी को खड़ा किया।