आलाकमान ने नहीं स्वीकारा सिद्धू का त्यागपत्र, इस्तीफों की झड़ी के बीच आज पंजाब कैबिनेट की बैठक
बुधवार, 29 सितम्बर 2021 (00:35 IST)
नई दिल्ली। पंजाब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से मंगलवार को नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। पंजाब कांग्रेस में भूचाल आ गया। इसके बाद पंजाब कांग्रेस में इस्तीफे की झड़ी लग गई। सिद्धू के बाद उनके समर्थन में भी इस्तीफे का दौर शुरू हो गया। सिद्धू के कुछ घंटों बाद ही रजिया सुल्ताना ने भी कैबिनेट मंत्री पद छोड़ दिया। पटियाला में सिद्धू ने अपने समर्थकों के साथ बैठक की।
नवजोत सिंह सिद्धू से मिलने के बाद पंजाब कांग्रेस के विधायक परगट सिंह ने कहा कि एक-दो मुद्दे हैं, बात हो गई है। कई बार गलतफहमी हो जाती है, हम उन्हें हल कर लेंगे। अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने कहा कि एक-दो छोटे-छोटे मुद्दे हैं, आपस में गलतफहमी की वजह से विश्वास टूटा और कोई बड़ी बात नहीं है, आज सारा मसला सुलझ जाएगा। सिद्धू के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पद से गुजराल इंदर चहल, पंजाब कैबिनेट की मंत्री रजिया सुल्ताना, कांग्रेस के महासचिव पद से योगिंदर ढींगरा और पंजाब कांग्रेस के महासचिव (प्रभारी प्रशिक्षण) के पद से गौतम सेठ ने इस्तीफा दे दिया है।
पंजाब सरकार के शिक्षा मंत्री परगट सिंह के इस्तीफे की भी खबर आई। मीडिया खबरों के मुताबिक पार्टी हाईकमान ने नवजोत सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। पार्टी ने राज्य स्तर पर इस विवाद को सुलझाने के निर्देश दिए हैं और इसके बाद ही सिद्धू के इस्तीफे पर कोई फैसला लिया जाएगा। खबरों के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमे के विधायकों ने उनसे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की है। पंजाब कांग्रेस में सिद्धू समर्थकों के इस्तीफों का दौर जारी है। आज सुबह पंजाब कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है। खबरों के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमे के विधायकों ने उनसे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की है। सुनील जाखड़ ने सिद्धू पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सिर्फ क्रिकेट नहीं है।
बताया था जन्मजात कांग्रेसी : पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू करीब 5 साल पहले जब भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे तो उन्होंने खुद को अपनी जड़ों की ओर लौटने वाला जन्मजात कांग्रेसी बताया था और आज उन्होंने पंजाब इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। सिद्धू को 18 जुलाई को पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपी गयी थी और उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद के घटनाक्रम के दौरान राज्य में पार्टी के कद्दावर नेता अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ गया।
नये मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा राज्य की कमान संभालने के कुछ ही दिन बाद और राज्य सरकार के नये मंत्रिमंडल के सदस्यों को विभाग सौंपे जाने के दिन 57 वर्षीय सिद्धू ने अचानक से पार्टी की प्रदेश इकाई की जिम्मेदारी छोड़कर सभी को चौंका दिया। उन्होंने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब राज्य में विधानसभा चुनाव में पांच महीने से भी कम समय बचा है। सिद्धू 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे और तब उन्होंने कहा था कि वे जन्मजात कांग्रेसी हैं जो अपनी जड़ों की ओर लौट आए हैं।
सिद्धू ने कहा था कि वे आला कमान द्वारा नियुक्त किसी भी नेता के अधीन काम करने के लिए तैयार रहेंगे और पार्टी जहां से चाहे, वहां से वह चुनाव लड़ेंगे। जब सिद्धू से उस वक्त पूछा गया था कि क्या वह पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनना चाहते हैं तो उन्होंने जवाब दिया था कि इस बारे में बातचीत करना जल्दबाजी होगी।
साढ़े चार साल में सिद्धू और पार्टी नेता अमरिंदर सिंह के बीच तनाव इतना गहरा गया कि 79 साल के सिंह को मुख्यमंत्री पद तक छोड़ना पड़ गया। अमरिंदर ने पिछले दिनों पद छोड़ने के बाद कहा कि जिस तरह से पार्टी इस संकट से निपटी है, उससे वह अपमानित महसूस कर रहे हैं।
अमरिंदर ने अपने इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धू को खतरनाक और राष्ट्र-विरोधी करार दिया था। उन्होंने आज सिद्धू के इस्तीफे के बाद तुरंत प्रतिक्रिया में भी यही कहा, मैंने आपसे कहा था कि वह स्थिर आदमी नहीं हैं। वह सीमावर्ती राज्य पंजाब के लिए ठीक नहीं हैं।
क्रिकेटर, क्रिकेट कमेंटेटर, टीवी प्रस्तोता जैसी अनेक भूमिकाएं निभाने वाले सिद्धू चार बार सांसद भी रह चुके हैं और हमेशा कहते रहे हैं कि उनके लिए पंजाब पहले आता है। सिद्धू के पिता भगवंत सिंह पटियाला में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रहे थे और वे अपने बेटे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलते देखना चाहते थे। सिद्धू ने 1981-82 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया था और फिर अपनी धुआंधार बल्लेबाजी के लिए लोकप्रिय भी हुए। सिद्धू ने 2004 में अमृतसर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीतिक पारी शुरू की। उन्होंने पहले ही चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज आर एल भाटिया को हराया था।
भाजपा में रहते हुए भी सिद्धू के, सहयोगी अकाली दल के बादल परिवार से खटास भरे रिश्ते रहे थे, लेकिन जब भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अरुण जेटली को अमृतसर से उतारा तो उनके भाजपा से भी रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। उन्हें भाजपा ने राज्यसभा में भेजा लेकिन वे पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने से ऐन पहले सिद्धू ने आवाज-ए-पंजाब नाम का मोर्चा बनाया था, जिसे बाद में भंग कर दिया गया।
पंजाब में 2017 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद अटकलें थीं कि सिद्धू को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है लेकिन उन्हें कैबिनेट मंत्री पद से संतोष करना पड़ा। सिद्धू और अमरिंदर के रिश्ते कभी सौहार्दपूर्ण नहीं रहे। अमरिंदर ने सिद्धू का स्थानीय निकाय विभाग बदलकर उन्हें ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी लेकिन सिद्धू ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। साल 2019 में मंत्री पद छोड़ने के बाद से 2021 की शुरुआत तक सिद्धू ज्यादा चर्चाओं में नहीं रहे।
हालांकि, कुछ महीने पहले वे सुर्खियों में आने लगे और उन्होंने विपक्ष के साथ ही अपने मुख्यमंत्री पर भी अनेक मुद्दों पर निशाना साधना जारी रखा। सिद्धू को अमरिंदर सिंह के कड़े विरोध के बावजूद जुलाई में पार्टी की प्रदेश इकाई का नया प्रमुख बनाया गया।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सिद्धू की ताजपोशी के साथ आला कमान ने स्पष्ट संकेत दिया कि वह उनके पीछे खड़ा है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के समर्थन से सिद्धू को अमरिंदर के विरोध के बावजूद पद संभालने में कठिनाई नहीं आई। सिद्धू की एक समारोह में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलने की तस्वीरें आने के बाद चहुंओर काफी आलोचना हुई थी।