Donald Trump behind Arab Pak agreement: पिछले कुछ हफ्तों से भारत और अमेरिका के बीच एक अजीब सा विरोधाभास देखने को मिल रहा है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना 'बहुत अच्छा दोस्त' बताते हैं। वहीं, दूसरी तरफ, उनकी नीतियों और बयानों से ऐसा लगता है कि वह भारत पर व्यापार और भू-राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या भारत के साथ 'डबल गेम' खेल रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप? इसमें काफी हद तक सच्चाई हो सकती है क्योंकि ट्रंप ने पिछले दिनों पहले यूरोपीय संघ और फिर जी7 देशों पर भारत पर भारी टैरिफ लगाने के लिए दबाव बनाया था, हालांकि वे इसमें कामयाब नहीं हुए।
दूसरी ओर, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए रक्षा समझौते के पीछे भी अमेरिका और ट्रंप को ही माना जा रहा है। क्योंकि दोनों ही देश वर्तमान में अमेरिका के काफी करीब हैं। इस समझौते के मुताबिक यदि किसी देश पर आक्रमण होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। हालांकि भारत ने उम्मीद जताई है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के साथ अपने रणनीतिक रक्षा समझौते के मद्देनजर पारस्परिक हितों और संवेदनशीलता को ध्यान में रखेगा।
अमेरिका के भारत विरोध की बात को इससे भी बल मिलता है कि ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि ईरान के बंदरगाह चाबहार का संचालन करने वाले लोगों पर इस महीने के अंत से प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे। यदि ऐसा होता है तो इसका भारत पर भी असर पड़ेगा। दरअसल, अमेरिका भारत को रूस से दूर करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरह की नीतियों को अपना रहा है। इस बीच, ट्रंप ने H1B वीजा को लेकर बड़ा फैसला किया है। इस वीजा के सहारे अमेरिका में एंट्री लेने वाले लोगों को 1 लाख डॉलर सालाना यानी लगभग 88 लाख रुपए फीस देनी होगी। इसका भारतीयों पर भी असर होगा।
भारत का संतुलित रुख : हालांकि भारत सरकार ने एक संतुलित रुख अपनाया है। उसने न तो सार्वजनिक रूप से ट्रंप की आलोचना की है और न ही वह उनकी मांगों के आगे झुका है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और प्रोफेसर जॉन मियरशाइमर ने भी ट्रंप की इस नीति की आलोचना की है। वे मानते हैं कि यह एक 'बड़ी भूल' है जो भारत को अमेरिका से दूर कर सकती है। बोल्टन के मुताबिक यह भारत को बहुध्रुवीय दुनिया की ओर धकेल रहा है, जहां वह अपनी विदेश नीति में यूरोप और अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है। ट्रंप की यह नीति अमेरिकी विदेश नीति की दीर्घकालिक स्थिरता और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है।
इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता पटरी पर लौटती हुई दिख रही है। ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने भारत में अगले दौर की बातचीत के लिए चर्चा की। भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अमेरिकी अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान यह निर्णय लिया गया कि दोनों पक्षों के लिए परस्पर लाभकारी व्यापार समझौते को जल्द निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए प्रयास तेज किए जाएंगे।
क्या कहते हैं मुख्य आर्थिक सलाहकार : भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने उम्मीद जताई है कि ऊंचे शुल्क को लेकर अमेरिका के साथ पैदा हुए विवाद का समाधान अगले 8 से 10 सप्ताह में निकल सकता है। उन्होंने कहा कि पर्दे के पीछे दोनों सरकारों के बीच शुल्क विवाद को लेकर बातचीत जारी है। उन्होंने इस बात को लेकर आगाह किया कि शुल्क जारी रहने की स्थिति में अमेरिका को भारतीय वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आ सकती है। माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद टैरिफ 10 से 15 फीसदी हो सकता है। हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए ट्रंप के इस 'डबल गेम' को कैसे संभालता है।