दलाई लामा ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी चाहते थे कि जिन्ना प्रधानमंत्री बन जाएं और देश का विभाजन न हो, लेकिन नेहरू भी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। अत: उन्होंने गांधी की बात मानने से इंकार कर दिया।
दरअसल, तिब्बती धर्मगुरु ने इस बात को एक छात्र के सवाल के जवाब में उदाहरण के रूप में पेश किया था। हालांकि उन्होंने नया कुछ भी नहीं कहा क्योंकि इस तरह की बात पहले भी होती रही हैं। उन्होंने उसी बात को दोहराया है।
अदूरदर्शिता : इसे नेहरू की अदूरदर्शिता से भी जोड़कर देखा जाता है। क्योंकि कहा जाता है कि जिन्ना को कैंसर था और उनकी कुछ समय बाद ही मृत्यु होना तय थी। लेकिन, नेहरू या तो इस बारे में जानते नहीं थे या फिर वे प्रधानमंत्री पद को किसी भी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहते थे। भारत की आजादी के करीब एक साल बाद जिन्ना की 11 सितंबर 1948 को कराची में मौत हो गई थी।
यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि नेहरू और जिन्ना जहां दोनों ही भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, वहीं बहुमत सरदार पटेल के पक्ष में था, लेकिन फिर गांधीजी ने पटेल के मुकाबले नेहरू को ज्यादा तरजीह दी।