इस तरह से बन सकता है अयोध्या में राम मंदिर

संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देवपुजारीजी ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने के दो ही तरीके हैं। या तो सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में रोज सुनवाई कर जल्द ही अपना निर्णय दे दे या फिर इस संबंध में संसद कानून बना दे। कानून बनाने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। राज्यसभा में सामान्य बहुमत भी नहीं है। इसके लिए अगले चुनाव में जनता को भाजपा को दो तिहाई बहुमत से जिताना होगा। 

भगवान राम ने बताया था कौन हैं हनुमानजी : वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब रामजी की पहली मुलाकात हनुमानजी से होती है तो वो सुग्रीव के दूत के रूप में उनसे मिलते हैं। इस मुलाकात के बाद स्वयं भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा था कि हनुमान के बारे में मेरा मत है कि उन्होंने वेदाध्ययन किया है, शास्त्रों का अध्ययन किया है। जिस भी व्यक्ति ने वेदों का अध्ययन किया है वो विप्र है। एक अन्य श्लोक में कहा गया है कि हनुमानजी ने बार-बार व्याकरण पढ़ा है, इसलिए उनके बोलने में कहीं भी व्याकरण का दोष नहीं है। 
 
रामजी ने कहा कि हनुमानजी की वाणी इतनी कल्याणी है, ऐसे मंत्री जिस भी राजा के पास होंगे, उसका काम तो  होगा ही। उन्होंने जो शब्दों का चयन किया है वो बहुत योग्य है। इससे ज्यादा योग्य शब्दों का चयन हो ही नहीं  सकता। इनके हाव भाव और बोलने में तालमेल था। 
 
भारत इस तरह बन सकता है विश्व गुरु : भारत को विश्व गुरु बनाने की बात अकसर कही जाती है पर सवाल यह उठता है कि यह कैसे होगा? भारतीय विद्या पढ़ने के लिए आज भी विदेशी भारत आ रहे हैं। हालांकि इन लोगों की संख्‍या काफी कम है। वहां से ज्यादा लोग भारत आ सकते हैं पर उन्हें पढ़ाने के लिए समुचित व्यवस्था होना चाहिए। आज विश्व में जितनी भी समस्याएं हैं सभी का निदान भारत में पूर्वजों के पास मौजूद था।
 
भारतीय विद्या दो भागों में बंटी हुई है। लौकिक और अलौकिक। लौकिक विद्या के लिए शिक्षक कम मात्रा में उपलब्ध है और अलौकिक के शिक्षक तो हैं ही नहीं। हमें ये शिक्षक तैयार करना होंगे। इसके बाद हमें विश्व से भारत शिक्षा के लिए आने का आह्वान करना होगा। अगर इससे पहले ही भारत में ज्यादा लोग आने लगे तो स्थिति विचित्र हो सकती है। योग, आयुर्वेद के प्रचार के कारण लोग भारत आ रहे हैं। यह संख्या आगे और बढ़ेगी। इस तरह हम विश्व गुरु बन सकते हैं।
 
संस्कृत ही कर सकती है यह काम : संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं को शुद्ध रखने में सहायक हो सकती है। ये जो खिचड़ी बनी है, इसका निवारण संस्कृत ही कर सकती है। अरबी, उर्दू, अंग्रेजी समेत 5 भाषाओं को मिलाकर हिंदी बोली जाती है, इसकी आवश्यकता नहीं है। हिंदी ही नहीं, भारत की सभी भाषाओं का यह हाल है। उदाहरण के लिए हम तारीख के बदले दिनांक कह सकते हैं और शादी के बदले विवाह कहा जा सकता है। ऐसी लंबी सूची है।
 
देवपुजारीजी ने कहा कि व्यक्तिगत स्तर पर भी मैं यह प्रयास करता हूं कि जब लोग प्रादेशिक भाषा में बात करते हैं तो विदेशी शब्दों का इस्तेमाल नहीं हो। किसी भी भाषा के प्रति गुरेज नहीं है, आग्रह यह है कि जिस भी भाषा को बोलें, उसी के शब्दों का प्रयोग किया जाए। आधी हिन्दी, आधी अंग्रेजी, यह नहीं चलेगा।
 
दो तरह से आगे बढ़ सकती है संस्कृत : हिन्दी भाषी राज्यों में संस्कृत को बढ़ावा देने संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि यदि शिक्षा मंत्री या मुख्यमंत्री की इच्छा है तो सबकुछ हो सकता है और नहीं है तो कुछ भी नहीं हो सकता। यूपी के मुख्यमंत्री भाषा विभाग भी देखते हैं। उनका संस्कृत के प्रति लगाव है। यूपी में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान नाम की एक संस्था है, इसके माध्यम से यहां इस भाषा को आगे बढ़ाने का काम किया जाता है। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान अब तक तो यह वर्ष में केवल एक पुरस्कार बांटती थी और इसके पास बजट भी नहीं था।
 
जैसे ही योगी सरकार आई उन्होंने संस्थान के कार्यक्रम में कहा कि संस्कृत के लिए काम तो इससे जुड़े लोग ही कर सकते हैं, हम केवल धन दे सकते हैं। इसमें कमी नहीं आने दी जाएगी। जो भी करना है आपको करना है। उन्होंने कहा कि जितने भी विद्यालय यूपी में चल रहे हैं सभी की पुस्तकों में संस्कृत आनी चाहिए। तब से लगातार शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। वहां तीसरी से बच्चों को संस्कृत पढ़ाई जाती है पर कई वर्षों से संस्कृत के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई। कभी गणित का तो कभी उर्दू का शिक्षक संस्कृत पढ़ाता था। ऐसे में खानपूर्ति होती है। अब नए लोगों को प्रशिक्षण के लिए भेजा जा रहा है। यह लोग उत्साह से इसमें सिखाई गई बातों को लागू भी कर रहे हैं। 
 
इसी तरह केरल में जनता की मांग पर मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने संस्कृत भारती मंच पर यह घोषणा की थी अगले शैक्षणिक वर्ष से विद्यालयों में पहली कक्षा से संस्कृत अनिवार्य होगी। यह जनता की भी इच्छा थी। इस फैसले को वहां लागू कर दिया गया।

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