जो लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं, वे पिछले दिनों देश की राजनीति के केंद्र में खूब याद किए गए हैं। उन्हें लेकर ज्यादातर बहस और विवाद ही हुए हैं। चाहे वे अंबेडकर हो या फैज अहमद फैज। महात्मा गांधी और गोडसे ही क्यों न हो।
इस बार संजय राउत ने इंदिरा गांधी और मुंबई के कुख्यात डॉन करीम लाला की मुलाकात को लेकर बयान दिया है। इस पर विवाद शुरू हो गया है, आगे विवाद बढ़ेगा भी। ट्विटर पर हैशटैग राउत_एक्सपोज्ड_इंदिरागांधी टॉप ट्रेंड है। ऐसे में उस डॉन के बारे में जानना दिलचस्प होगा। जानते हैं कौन था करीम लाला।
देश की कमर्शियल कैपिटल मुंबई लंबे वक्त में अपराधी और माफियाओं के कब्जे में रहा है। मुंबई से ही डॉन और अंडरवर्ल्ड जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ था। हिन्दी फिल्मों ने भी डॉन और अपराध को पर्याप्त ग्लोरिफाई किया है। ऐसे में वहां से डॉन और माफियाओं के बड़े नामों का उदय हुआ है।
50 से लेकर 80 के दशक तक मुंबई पर ऐसे ही डॉन ने राज किया है। मुंबई शहर पर कब्जे की कहानी हाजी मस्तान से शुरू होकर वर्दराजन मुदलियार और करीम लाला से होकर अबू सलेम और, छोटा राजन और दाऊद इब्राहम तक आती है। यह 70 के दशक का दौर रहा होगा जब हाजी मस्तान, वर्दराजन और करीम लाला ने अपनी-अपनी ताकत के मुताबिक मुंबई को अपने धंधों के लिए आपस में बांट लिया था।
जब हाजी मस्तान ने कहा ‘असली डॉन’ तो ये है
जिस करीम लाला का 2020 में फिर से जिक्र किया जा रहा है, उसका जन्म अफगानिस्तान के कुनार जिले में हुआ था। पूरा नाम था अब्दुल करीम शेर खान था। 1940 की शुरुआत में वो मुंबई में डॉक पर काम करने आया था और घनी आबादी वाले इलाके भिंडी बाजार में आशियाना बना लिया। इसी दौरान वो पठानों की गैंग का हिस्सा हो गया। काफी तेज और साहसी करीम ने गैंग का हिस्सा होते ही मुंबई की मुस्लिम बस्तियों डोंगरी, नागपाड़ा, भिंडी बाजार और मोहम्मद अली रोड में अपने धंधों को अंजाम देना शुरू कर दिया। साहूकारों, जमीदारों, व्यापारियों और दुकानदारों से घर, जमीनें खाली करवाना, सट्टा लगाना, अवैध शराब का काम करना, अपहरण, फिरौती वसूली, सुपारी लेकर हत्या, नशीली दवाओं की तस्करी, नकली नोट फैलाना आदि करीम लाला की प्रोफाइल में था। और यही काम करते हुए पठान गैंग का मुख्य सरगना हो गया।
लंबे समय तक अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के बाद मुंबई में उसका सिक्का चलने लगा था। करीब 6 फीट ऊंची कद काठी, पठानी सूट और रौबदार आवाज के कारण डॉन हाजी मस्तान भी उसे असली डॉन कहता था। बाद में उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो अपने भतीजे समद खान को उसने पठान गैंग का मुखिया बना दिया। वह खुद होटल, ट्रैवल्स, ट्रांसपोर्ट और पासपोर्ट एजेंसी का काम देखने लगा था। साल 1995 में एक जमीन के विवाद में एक महिला को धमकाने के आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उस पर कभी किसी अपराध का दोष साबित नहीं हो सका।
यूं खत्म हुआ करीम लाला का कुनबा
जब 80 के दौर में दाऊद इब्राहिम ने अपराध की दुनिया में एंट्री की दाऊद इब्राहिम और समद खान की गैंग आपस में भिड़ने लगी। 1981 में पठान गैंग ने दाऊद के भाई शब्बीर की हत्या कर दी। उसके बाद मुंबई में गैंगवॉर और हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे दाऊद गैंग ने पठान गैंग के मेंबर्स को खत्म कर दिया। 1986 में करीम लाला के भाई रहीम खान के मर्डर के साथ ही पठान गैंग का सफाया हो गया।
हालांकि मुंबई की गलियों में यह बात भी काफी प्रचलित है कि दाऊद इब्राहिम करीम लाला के कामों में बहुत अड़ंगा डालता था, एक दिन दाऊद लाला की पकड़ में आ गया और करीम लाला ने दाऊद की जमकर धुनाई कर दी थी।
क्या जंजीर का शेरखान ही था करीम लाला?
करीम लाला के बॉलिवुड में भी रिश्ते थे। वो पार्टियां करता था जिसमें बॉलिवुड की कई बड़ी हस्तियां शामिल होती थीं। 1973 में सुपर हिट फिल्म जंजीर आई थी। कहा जाता है कि उसका किरदार शेर खान करीम लाला ही था। साल 1988 में सबसे पहले वर्दराजन मुदलियार की मौत हो गई। करीब 6 साल 1994 में हाजी मस्तान भी गुजर गया। 19 फरवरी, 2002 को 90 साल की उम्र में करीम लाला भी इस दुनिया से चल बसा।