नई दिल्ली, बीमारी की हालत में उसका उपचार करने वाले डॉक्टर को तो आप धन्यवाद देते हैं, और राशन लेने जाते हैं तो दुकानदार तक को थैंक्स बोलते हैं। पर, बीमारी से निजात दिलाने वाली दवा विकसित करने के लिए जिन वैज्ञानिकों ने दिन-रात एक कर दिया, उनको भी क्या कभी आपने धन्यवाद कहा है!
अनाज पैदा करने वाले किसानों का श्रम निश्चित तौर पर अनमोल है। लेकिन, खेत में उगायी जाने वाली फसलों की जिन उन्नत किस्मों की खेती किसान करते हैं, उन किस्मों को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों को भी धन्यवाद कहना जरूरी है।
फसलों की पैदावार बढ़ाने वाली उन्नत किस्में विकसित करके कृषि अनुसंधान के क्षेत्र अपनी छाप छोड़ने वाले ऐसे ही एक कृषि वैज्ञानिक थे डॉ एम. महादेवप्पा।
डॉ एम. महादेवप्पा को देश में हाइब्रिड चावल की खेती को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। इस महान कृषि वैज्ञानिक की मृत्यु होने पर उनकी पत्नी, एम. सुधा महादेवप्पा, जिन्होंने डॉ महादेवप्पा को चावल कि किस्मों के विकास में निरंतर संघर्ष करते हुए देखा है, ने शोक संतप्त स्वर में कहा– मैं तुम्हारी पहली पत्नी धान के बाद दूसरी पत्नी हूं।
पद्मभूषण एवं पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ महादेवप्पा भारतीय कृषि वैज्ञानिक और पादप प्रजनक थे, जो चावल की उच्च उपज देने वाली हाइब्रिड किस्में विकसित करने के लिए प्रसिद्ध थे। चावल की इन किस्मों के विकास के लिए डॉ महादेवप्पा को राइस महादेवप्पा के नाम से भी जाना जाता है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने डॉ महादेवप्पा की प्रशंसा करते हुए कहा था कि कृषि विज्ञान में उन्होंने बहुत-से योगदान दिए हैं। ऐसे लोगों के योगदान की बदौलत ही भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन सका है, और भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए खुद को तैयार करने में सक्षम हुआ है।
आनुवांशिक-विज्ञानी (जेनेटिक साइंटिस्ट) डॉ एम.एस. स्वामीनाथन, जिन्हें भारत की हरित क्रांति का जनक कहा जाता है, ने इस महान कृषि वैज्ञानिक के निधन पर कहा है कि "डॉ महादेवप्पा का हमारे देश में कृषि अनुसंधान, शिक्षा और विकास में योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है।
उन्हें हमारे देश में "हाइब्रिड चावल के जनक" के रूप में माना जा सकता है। वह न केवल एक सफल पादप प्रजनक रहे हैं, बल्कि युवा पेशेवरों के लीडर भी रहे हैं।
कर्नाटक के चामराजनगर में डॉ एम. महादेवप्पा का जन्म 04 अगस्त 1937 को हुआ था। 06 मार्च 2021 को 83 वर्ष की उम्र में डॉ महादेवप्पा का वृद्धावस्था जनित बीमारी के कारण उनके कर्नाटक स्थित निवास पर निधन हो गया। लेकिन, डॉ महादेवप्पा द्वारा विकसित की गई चावल की उन्नत किस्मों की समृद्ध विरासत आज देशभर में लहलहा रही है।
अपने इस योगदान के लिए डॉ महादेवप्पा लंबे समय तक याद किए जाएंगे। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, बेंगलुरु में काफी लंबा समय राइस ब्रीडर के रूप में बिताया, और चावल की लोकप्रिय हाइब्रिड किस्में विकसित कीं, जिसमें केआरएच-1 और केआरएच-2 प्रमुखता से शामिल हैं।
डॉ महादेवप्पा की उपलब्धियों की लंबी सूची है, पर उन्हें चावल की उन नौ उन्नत किस्मों के लिए सबसे अधिक याद किया जाता है, जिन्हें उन्होंने वर्षों की मेहनत से विकसित किया है। उन्हें पार्थेनियम नामक खरपतवार के उन्मूलन के प्रयासों के लिए भी याद किया जाएगा। डॉ महादेवप्पा ने पार्थेनियम के प्रभावी उन्मूलन के लिए खरपतवार प्रबंधन की एकीकृत तकनीक पर उल्लेखनीय काम किया है।
डॉ महादेवप्पा के योगदान को देखते हुए उन्हें 1984 में राज्योत्सव पुरस्कार, 1999 में भारत रत्न सर एम. विश्वेश्वरैया मेमोरियल अवार्ड, 2005 में पद्मश्री और वर्ष 2013 में पद्मभूषण सहित कई पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। कृषि में वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में योगदान के साथ-साथ उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायी हैं।
उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, धारवाड़ के कुलपति के तौर पर कार्य किया, और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के चेयरमैन के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं। जेएसएस रूरल डेवेलपमेंट फाउंडेशन में कार्य करते हुए उन्होंने ग्रामीण विकास के क्षेत्र में भी योगदान दिया है।
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआईआई), फिलीपींस और मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) से भी डॉ महादेवप्पा का जुड़ाव रहा है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के निर्वाचित फेलो रह चुके डॉ महादेवप्पा ने विभिन्न अभिनव अनुप्रयोगों और अनुसंधान पहलों के माध्यम से भारतीय कृषि में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है।
उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में शिक्षा प्राप्त की और बाद में मैसूर, कोयम्बटूर में पढ़ाई की। सीएफटीआरआई में डॉ महादेवप्पा ने वरिष्ठ शोधकर्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, और चावल की हाइब्रिड किस्मों के साथ-साथ ज्वार की किस्में विकसित करने में भी योगदान दिया। उन्होंने फिलीपींस, जापान, ताइवान, थाईलैंड, मलेशिया, चीन, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, क्यूबा, रूस और केन्या जैसे देशों की यात्रा की, और दुनियाभर में अपने शोध और अभ्यास का विस्तार किया।
मिशन फार्मर साइंटिस्ट अभियान एवं मिशन पर्यावरण योद्धा परिवार के प्रणेता और मशहूर कृषि पत्रकार डॉ महेंद्र मधुप ने डॉ महादेवप्पा को कृषि महानायक करार देते हुए कहा है कि “मैं उनके देहमुक्त होने के समाचार से स्तब्ध हूं। कृषि से संबंधित राष्ट्रीय पत्रिका शरद कृषि के हिन्दी संस्करण के सम्पादक के रूप में मेरा जब भी उनसे मिलना हुआ, वैज्ञानिक जानकारियों के साथ-साथ सदैव उनका स्नेह-भाव भी मिलता रहा। उनका देहमुक्त होना भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी क्षति होने के साथ-साथ मेरे लिए एक निजी क्षति भी है।” (इंडिया साइंस वायर)