RSS की लोकसभा चुनाव पर नजर, मोहन भागवत के भाषण की 5 प्रमुख बातें
बुधवार, 19 सितम्बर 2018 (14:54 IST)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की तीन दिवसीय व्याख्यानमाला 'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' को संबोधित किया। हालांकि जानकार इसे आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर ही देख रहे हैं। आइए जानते हैं कि संघ प्रमुख आखिर भारत के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं...
1. मुस्लिमों के प्रति उदार : संघ प्रमुख ने व्याख्यानमाला में मुस्लिमों के प्रति उदार रवैया दर्शाने की कोशिश की है। संघ को कट्टरवादी हिन्दू संगठन के रूप में पेश किया जाता है। भागवत ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र की कल्पना मुस्लिमों के बगैर नहीं की जा सकती है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए, उस दिन हिन्दुत्व नहीं रहेगा।
भागवत ने कहा कि इस्लाम को मानने वालों ने भी कहा था कि पूजा-अर्चना के तरीके अलग हो सकते हैं, लेकिन वे भारत माता की ही संतान हैं। भागवत ने अपने भाषण से संघ की हिन्दुत्व की परिभाषा क्या है, यह बताने की कोशिश की है। उन्होंने अपने भाषण में 'वसुधैव कुटुम्बकम' की बात भी कही।
2. केन्द्र सरकार का रिमोट कंट्रोल नहीं : विपक्षी मोदी सरकार पर यह आरोप लगाते रहते हैं कि वह नागपुर से चलती है। भागवत ने भाषण में दो टूक कहा कि संघ के पास सरकार का कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है और न ही सरकार के किसी फैसले में आरएसएस का कोई दखल होता है।
उन्होंने कहा कि नागपुर से मोदी सरकार को कोई निर्देश भी नहीं दिए जाते हैं। भागवत ने अपने भाषण में यह जताने की कोशिश की कि केन्द्र सरकार पूरी तरह स्वतंत्र रहकर अपने फैसले ले रही है। इसमें संघ का कोई दखल नहीं है। उन्होंने भाषण से भाजपा को भी संकेत दिया है कि अच्छे कामों में संघ उसके साथ है।
3. महिलाओं को साधने की कोशिश : मोहन भागवत ने अपने भाषण से राहुल गांधी के उन आरोपों पर जवाब दिया है कि संघ में महिला नहीं है और संघ महिला विरोधी है। संघ प्रमुख ने अपने भाषण में कहा कि 1931 में ही डॉ. हेडगेवार से पूछा गया कि आज वातावरण ऐसा नहीं कि पुरुष और महिला साथ काम कर सकें तो राष्ट्र सेविका समिति बनाई गई। ये संघ बना तब से हो रहा है। संघ प्रमुख ने अपने भाषण में कहा कि संघ महिलाओं के लिए अलग-अलग तरह के कार्य करता है। उन्होंने यह जताने की कोशिश की कि संघ महिला-पुरुषों में कोई अंतर नहीं करता है।
4. लोकतांत्रिक संगठन जताने की कोशिश : भागवत ने अपने भाषण में उन आरोपों पर भी जवाब दिया है कि संघ एक तानाशाह संगठन है। उन्होंने कहा कि संघ का हर फैसला आम स्वयंसेवक के विवेक से और सामूहिक होता है। एक फैसला होने से लोगों को लगता है कि एक व्यक्ति फैसले ले रहा है।
5. लोकसभा चुनावों पर नजर : लोकसभा चुनाव 2019 को देखते हुए संघ की यह व्याख्यानमाला महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भागवत कहीं न कहीं संघ को समन्वयवादी बताकर लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह को आसान करना चाहते हैं। उनका आशय है कि संघ समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलता है, चाहे वह किसी जाति अथवा धर्म का हो।