क्‍या हम उम्‍मीद करें कि राजनीतिक और पत्रकारीय ‘पीपली लाइव’ के बीच ‘हाथरस की एक न‍िर्दोष लड़की’ को अंतत: न्‍याय मिलेगा?

उत्‍तर प्रदेश के हाथरस में एक घटना होती है। जिसे गैंग रेप का मामला बताया जा रहा है। मामला पुलिस के पास पहुंचता है। पुलिस का काम था कि आरोप‍ियों को सलाखों के पीछे डालकर घटना की निष्‍पक्ष जांच करती। लेकिन पुलिस यह करने की बजाए एक लापरवाही को अंजाम देती है। पोस्‍टमार्टम के बाद पीड़ित लड़की का देर रात अंतिम संस्‍कार कर देती है। लड़की के परिवार का आरोप है कि अंतिम समय में उन्‍हें बेटी की अंत्‍येष्‍ट‍ि में शामिल नहीं होने दिया गया और न ही उसका चेहरा देखने दिया गया।


‘पॉलिट‍िकल माइलेज’ देखते हुए हाथरस में राहुल गांधी और प्र‍ियंका गांधी की एंट्री होती है और उत्‍तर प्रदेश की योगी सरकार बैकफुट पर आ जाती है।

यह उत्‍तर प्रदेश सरकार की विफलता रही कि एक घटना में उसने व‍िपक्ष को इतना बड़ा ‘पॉलिट‍ि‍कल माइलेज’ दे द‍िया। इसके उलट अपनी और अपने पुलिस महकमे की भूमिका को साफ-सुथरा रखकर निष्‍पक्ष प्राथमिक जांच की जाती। आरोप‍ियों के साथ वैसा ही बर्ताव किया जाता, जैसा किया जाना चाहिए और पीड़ित‍ पक्ष के साथ वही सहानुभूति होनी चाहिए जैसा कानून में लिखा हुआ है। लेकिन यह सब करने में यूपी सरकार और पुलिस ने काफी देर कर दी, जिससे उनकी छवि पर दाग लगने शुरू हो गए हैं।

हालांकि अब सरकार ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश देकर कुछ हद तक अपना पक्ष स्‍पष्‍ट करने की कोशि‍श की है।

लेकिन दुखद यह है कि अब तक हाथरस की घटना का अच्‍छा खासा राजनीतिकरण हो चुका है। कांग्रेस के बाद अब समाजवादी पार्टी भी सरकार को घेरने की फ‍िराक में है, अच्‍छी बात भी है। अगर राजनीत‍िक पार्ट‍ियां ऐसे मुद्दों पर राजनीत‍ि नहीं करेगी तो कहां करेगीं। नेताओं से इससे ज्‍यादा और अपेक्षा भी क्‍या की जा सकती है? इसकी जगह अगर भाजपा होती या कोई ओर दल तो वो भी संभवत: यही करते।

किसी घटना में सरकार की विफलता को लेकर उससे सवाल पूछे जाने चाहिए और दबाव भी बनाया जाना चाहिए, लेकिन चिंता का विषय यह है कि यह अपराधि‍क मामलों में यह राजनीति‍करण बहुत सारी दरारें पैदा कर रहा है। कानून की दृष्‍ट‍ि से इस अपराध में दो ही पक्ष हैं। एक पीड़ि‍त और दूसरा आरोपी। लेकिन यह अब दलित और सवर्ण हो गया है। एक ही समुदाय के लोगों को आपस में बांटने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें और भी कई छोटे-छोटे घटक उभरकर सामने आ रहे हैं।

वैसे भी उत्‍तर प्रदेश और बि‍हार में जातिगत राजनीति का ही चलन है ऐसे में ऐसी घटनाओं को पूरी तरह से राजनीतिक चश्‍में से देखने की वजह से अब समाज और भी ज्‍यादा हिस्‍सों में बंटा हुआ और छ‍िन्‍न-भि‍न्‍न नजर आएगा। यह सामाजिक और राजनीतिक दोनों दृष्‍ट‍ि से दुखी करने वाला कृत्‍य है।

हिंदू-मुस्‍ल‍िम तो एक चिर वैमनस्‍य है ही। अब दलित-सवर्ण, राजपूत-ब्राह्मण, जाट-गुर्जर, पटेल-पाटीदार जैसे तमाम जात बनाम जात के साथ ही क्षेत्र बनाम क्षेत्र मसलन महाराष्‍ट्र बनाम बिहार जैसे राजनीतिक घटक उभर रहे हैं।

अभि‍नेता सुशांत सिंह की मौत के मामले के बाद महाराष्ट्र बनाम बि‍हार या उत्‍तर भारत का धूआं हम देख ही चुके हैं। इसके पहले भी मुंबई में महाराष्‍ट्रि‍यन और उत्‍तर भारतीयों के बीच की कटूता समय समय पर शर्मनाक स्‍तर को छूती रही है।

देशभर में यह सब होना सिर्फ और सिर्फ एक ही समुदाय को गर्त में पहुंचाने के लिए पर्याप्‍त है और वो है हिंदू संप्रदाय।

इसमें सबसे दुखद पहलू यह है कि इसमें पीड़ि‍त लड़की और उसका परिवार सिर्फ एक राजनीतिक मोहरा बनकर रह गए हैं। इसमें न्‍याय की उम्‍मीद एक बेमानी ख्‍याल है। इस तरह आने वाले समय में किसी भी धर्म या संप्रदाय और जाति के लोगों के लिए न्‍याय सिर्फ एक भ्रम बनकर रह जाएगा।

यह सही है कि कुछ हद तक स्‍थानीय स्‍तर पर राजनीत‍ि में जातिगत समीकरण काम करते हैं। वोट बैंक और जातीय कुटनीत‍ि राजनीति के ही तत्‍व हैं, लेकिन अगर यह देश का मानसिक विभाजन ही करने लगे और बात-बात पर टकराने लगे तो समझ लीजिए देश का राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्‍य आने वाले समय में और भी भयावह नजर आने वाला है।

हाथरस घटना की बात करें तो सुशांत मामले में महाराष्ट्र सरकार ने जो गलति‍यां कीं कमोबेश वही काम उत्‍तर प्रदेश की सरकार ने किया। हालांकि दोनों मामलों में जमीन-आसमान का अंतर है। सुशांत की मौत, बॉलीवुड, ड्रग माफ‍िया और महाराष्‍ट्र की राजनीति का आपस में कहीं न कहीं कनेक्‍शन है, इसलिए सुशांत और दिशा सालियान मामले को दबाने में महाराष्‍ट्र की त्र‍ि-मुखी सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, इस कोशि‍श में उनकी सारी नीयत उजागर हो गई जो पूरे देश ने देखा।

इसके विपरीत यूपी में एक लड़की से गैंग रेप का योगी सरकार का कोई सीधा कनेक्‍शन नजर नहीं आता। सरकार ने खुद की अब सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं। बावजूद इसके यूपी के पुलि‍स प्रशासन की गलत‍ियों और लापरवाहियों ने एक वहां एक वैक्‍यूम तैयार कर दिया। उसे जितना दबाया गया उतना वो उभरकर सामने आया और अब वह वैक्‍यूम किसी के लिए ‘पॉल‍िट‍िकल माइलेज’ तो किसी के लिए ‘पॉलिट‍िकल डैमेज’ का काम कर रहा है।

यूपी सरकार को चाहिए था कि पीड़ि‍त लड़की के शव को इस तरह से आधी रात में संवेदनहीनता के साथ नहीं जलाया गया होता। मीड‍िया को वहां जाने की अनुमत‍ि दी गई होती। उन्‍हें शव की तस्‍वीरें और वीड‍ियो बनाने दिए जाते। अंत में सरकार खुद राहुल गांधी और प्र‍ियंका गांधी को पीड़ित परिवार से मिलने के लिए अपनी सुरक्षा में ले जाती। अफसोस, यह सब नहीं हो सका।

क्‍या उम्‍मीद की जाना चाहिए कि देश में चल रहे राजनीतिक और पत्रकारीय ‘पीपली लाइव’ के बीच ‘हाथरस की एक न‍िर्दोष लड़की’ को अंतत: न्‍याय मिलेगा?

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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