याचिका में जनता को शिक्षित करने और धर्म-आधारित नफरत और घृणा फैलाने वाले भाषणों को नियंत्रित करने के लिए प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में धर्म और रिलिजन पर एक अध्याय शामिल करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालतें धार्मिक या दार्शनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं करती हैं और यहां तक कि विद्यालयी पाठ्यक्रम भी तय नहीं करती हैं व पाठ्यक्रम में अध्याय शामिल नहीं कर सकती हैं।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, अदालतें धार्मिक या दार्शनिक प्राधिकारियों के रूप में कार्य नहीं करती हैं। यहां थोड़ी सी गलती हुई है। आप हमें अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग लेनदेन का विशेषज्ञ, दार्शनिक एवं धर्मशास्त्र विशेषज्ञ समझने की भूल कर रहे हैं। हम इन सबमें पड़ने वाले नहीं हैं, मुझे नहीं पता कि ये याचिकाएं इस अदालत में क्यों आ रही हैं। हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour