पद्मावती के जौहर की कहानी तो इस समय सभी की जुबां पर हैं। परंतु चित्तौड़ के गौरवशाली इतिहास में ऐसे 2 और भी जौहर हुए हैं जिनके बारे में बहुत से लोग अनजान हैं। चितौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन वीरांगनाओं के जौहर का साक्षी रहा है। रानी पद्मावती के पद्चिन्हों पर चलते हुए दो अन्य रानियों सहित हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी।
चित्तौड़ का पहला जौहर सन 1303 में हुआ, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रूपवान रानी पद्मिनी को पाने की लालसा में अलाउद्दीन ने यहां पड़ाव डाला। रावल रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया और खिलजी से चंगुल से राणा रतनसिंह को आजाद किया।
गोरा और बादल जैसे राजपूत वीरों के पराक्रम की कहानियां भी इस जौहर के साथ कही-सुनी जाती हैं। युद्ध हारने की सूरत में अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि स्नान किया था। आज भी विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रूप में पहचानी जाती है।