जावड़ेकर ने शून्यकाल के बाद सदन में यह विधेयक चर्चा एवं पारित करने के लिए पेश किया। उन्होंने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इस समय आईएमएम सोसाइटी के माध्यम से चलाए जाते हैं और वे डिप्लोमा और फेलोशिप ही देते हैं लेकिन इस विधेयक के माध्यम से उन्हें डिप्लोमा की जगह डिग्री और फैलोशिप की जगह पीएचडी की उपाधि देने का अधिकार मिलेगा।
उन्होंने बताया कि अभी तक आईएमएम काउंसिल का अध्यक्ष मानव संसाधन विकास मंत्री होते हैं लेकिन अब यह नहीं होगा। इसी प्रकार संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में सरकारी प्रतिनिधि की संख्या घटाकर एक कर दी जाएगी। अब आईएमएम शिक्षकों की नियुक्ति, उनकी नियुक्ति के प्रकार, वेतन आदि के बारे में फैसला लेंगे। इसके लिए उन्हें सरकार की अनुमति नहीं लेनी होगी।
जावड़ेकर ने कहा कि इन संस्थानों का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा लेखा परीक्षण जारी रहेगा और उनकी वार्षिक रिपोर्ट संसद में पेश होती रहेगी और संसद के पास उनके कामकाज की समीक्षा का अधिकार रहेगा। उन्होंने इस विधेयक को देश के उच्च शिक्षा क्षेत्र में युगान्तकारी एवं ऐतिहासिक करार दिया और सदन से इसे पारित करने में सहयोग की अपील की। (वार्ता)