Supreme Court : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने नई दिल्ली में कहा है कि भारत में सांविधिक सजा नीति नहीं है और यह एक बखूबी स्थापित सिद्धांत है कि सजा तय करते समय मामले की परिस्थितियों पर विचार किया जाए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के अप्रैल 2019 के फैसले को चुनौती देने वाले एक दोषी की अपील का निस्तारण करते हुए शीर्ष न्यायालय ने उसकी सजा 5 साल से घटाकर 3 साल कर दी।
उच्च न्यायालय ने हत्या की कोशिश के 1984 के एक मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उसकी 5 साल जेल की सजा बरकरार रखी थी। न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता प्रमोद कुमार मिश्रा की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि होने का साक्ष्य नहीं दिया गया और यह नहीं कहा जा सकता कि उसने पूर्व नियोजित तरीके से ऐसा किया होगा।
पीठ ने मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि अपराध हुए 39 साल बीत चुके हैं और निचली अदालत ने 2 सह-आरोपियों को बरी कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इसलिए न्याय के हित में और ऊपर उल्लेख किए गए कारकों पर विचार करते हुए यह न्यायालय आरोपी की 5 साल सश्रम कारावास की सजा को घटाकर 3 साल सश्रम कारावास में तब्दील करता है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को 6 हफ्तों के अंदर 50,000 रुपए का जुर्माना भी भरना होगा, जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में अदा किया जाएगा। अभियोजन के मुताबिक अगस्त 1984 में इस आरोप के साथ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी कि मिश्रा सहित 3 लोगों ने एक व्यक्ति पर हमला किया था जिसने अपनी फसल बर्बाद करने की उनकी कोशिश का प्रतिरोध किया था।(भाषा)