जम्मू। कर्फ्यूग्रस्त जम्मू में तैनात सेना के जवानों के लिए परिस्थितियां असमंजस भरी हैं। इसी असमंजस भरी परिस्थिति में उसे कश्मीर में अगर अलगाववादियों की उस भीड़ से भी निपटना पड़ रहा है, जो हाथों में पाकिस्तानी झंडा लेकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं तो जम्मू में भीड़ भारत माता की जय कहते हुए तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन करती है तो सेना को उनसे सख्ती से निपटने के निर्देश स्थानीय पुलिस द्वारा दिए जाते हैं। इस मुद्दे पर दो बार सैनिक और पुलिस के जवान आपस में भिड़ भी चुके हैं। ऐसी ही परिस्थिति वर्ष 2008 के अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान भी पैदा हुई थीं।
जम्मू में हिंसा को थामने की कवायद में सेना की तैनाती हुई तो कश्मीर में पत्थरबाजों से निपटने के लिए भी उसे तैनात किया गया है। उसके लिए दोनों स्थानों पर परिस्थितियां बिलकुल विपरीत हैं। कश्मीर में उसे कई स्थानों पर गोलियां इसलिए बरसाने पर मजबूर होना पड़ रहा था क्योंकि पत्थरबाज सेना द्वारा खींची गई रेड लाइन को पार कर पत्थरबाजी करते हुए मुठभेड़ों में बाधा उत्पन्न की थी, लेकिन जम्मू में उसके लिए असमंजस भरी स्थिति से सामना इसलिए हो रहा है क्योंकि देशभक्त जम्मू हर बार मजबूत दीवार की तरह खड़ा रहा है और प्रदर्शनकारियों ने सिर्फ 'भारत माता की जय' के नारे लगाए और उनके हाथों में आईएस या पाकिस्तान का झंडा नहीं था बल्कि भारतीय तिरंगा था। ऐसे में सेना के जवान दुविधा में हैं कि वे तिरंगा थामने वाले हाथों पर कार्रवाई कैसे करें।
इस हमले में जम्मू ने नसीर अहमद के रूप में अपना सपूत खोया है। हमले के विरोध में जम्मू, सांबा, कठुआ, ऊधमपुर, रियासी, पुंछ, रामबन आदि कई जिलों में लोग सड़कों पर तिरंगा लेकर वंदे मातरम, भारत माता के जयघोष लगा सड़कों पर आ उतरे। उनकी मांग है कि दोषी आतंकियों सहित पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए।