डॉ. मुखर्जी ने बताया कि जैसे पॉवर बट को दबाया जाता है, यह वेंटिलेटर हवा सोख लेता है और इसे अल्ट्रा वायलेट चैंबर से गुजारा जाता है, जो कि हवा को शुद्ध कर देता है। फिल्टर के बाद हवा जीवाणु रहित हो जाती है। इस वेंटिलेटर को पाइप के जरिये मरीज के मुंह से जोड़ा जा सकता है। इसमें एक छोटा सा नॉब भी होता है, जिससे मरीज अपनी जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन की मात्रा को कम या ज्यादा कर सकता है।
मुखर्जी का कहना है कि ये जेब में रखने वाला वेंटिलेटर बनाने का ख्याल उन्हें भी तब आय़ा, जब वो कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहे थे। उन्हें अस्थमा के साथ सांस लेने में भी तकलीफ थी। मुखर्जी का कहना है कि अमेरिकी कंपनियों ने उनसे इस पॉकेट वेंटिलेटर के उत्पादन और बिक्री के लिए संपर्क किया है। इसके अब तक 30 पेटेंट कराए हैं।