छोटे बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें संस्कार और मार्गदर्शन की थाप से मनचाहा आकार दिया जा सकता है, लेकिन हल्की-सी गलत चोट से वे बिखर भी सकते हैं और दिशाहीन भी हो सकते हैं। दरअसल, आज के दौर में स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी तनावग्रस्त हो जाते हैं। यह तनाव शारीरिक भी हो सकता है और मानसिक भी। ऐसे में शिक्षकों के साथ ही पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों में पल रहे तनाव को पहचानने के साथ ही उसे दूर करने का पुरजोर प्रयास करें।
बच्चों के मित्र बनें : अनिल कहते हैं कि पैरेंट्स और शिक्षकों को बच्चों के व्यवहार पर करीबी नजर रखना चाहिए। यदि उनके व्यवहार में परिवर्तन दिखता है, जैसे- क्लास में एक्टिविटी में भाग न लेना, सवालों के जवाब न देना, खेल के मैदान में झगड़ा, सामान फेंकना, जिद करना, चिड़चिड़ापन, गुमसुम रहना, चुप रहना, दूसरों से मिलने से बचना, अपनी बातें शेयर नहीं करना, गुस्सा, स्कूल से मिलने वाले होमवर्क को पूरा नहीं कर पाना आदि ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
इस तरह के लक्षणों से कई बार पैरेंट्स यह समझ लेते हैं कि बच्चा बिगड़ रहा है, लेकिन हकीकत में वह तनाव से गुजर रहा होता है। ऐसे में जरूरी है कि उससे मित्रवत व्यवहार कर उसकी समस्याओं को समझें, उससे बात करें और जरूरत पड़ने पर उसका सहयोग भी करें।