लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर को तड़के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में असफल रहने पर चांद पर गिरे लैंडर का जीवनकाल कल खत्म हो जाएगा क्योंकि सात सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक चांद का एक दिन पूरा होने के बाद शनिवार तड़के पृथ्वी के इस प्राकृतिक उपग्रह को रात अपने आगोश में ले लेगी।
‘विक्रम’ की हार्ड लैंडिंग के कारण 7 सितंबर जमीनी स्टेशन से उसका संपर्क टूट गया था। इसरो तब से ही लैंडर से संपर्क करने के लिए सभी प्रयास करता रहा है, लेकिन अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिल पाई है और ‘विक्रम’ की कार्य अवधि पूरी हो गई।
इसरो ने आठ सितंबर को कहा था कि ‘चंद्रयान-2’ के ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल तस्वीर ली है, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद इससे अब तक संपर्क नहीं हो पाया। ‘विक्रम’ के भीतर ही रोवर ‘प्रज्ञान’ बंद है जिसे चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग को अंजाम देना था, लेकिन लैंडर के गिरने और संपर्क टूट जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया।
भारत को भले ही चांद पर लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता नहीं मिल पाई, लेकिन ऑर्बिटर शान से चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है। इसका जीवनकाल एक साल निर्धारित किया गया था, लेकिन बाद में इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें इतना अतिरिक्त ईंधन है कि यह लगभग सात साल तक काम कर सकता है।