उन्होंने कहा कि यदि कर्जदाताओं और कर्जदारों के बीच बातचीत से बेहतर परिणाम सामने आते हैं तो यह दिवाला एवं ऋणशोधन की प्रक्रिया में जाने से बेहतर होगा, लेकिन यदि दिवाला एवं ऋणशोधन प्रक्रिया ही एकमात्र रास्ता बचा हो तो बैंकों को कदम उठाना होगा।
श्रीनिवास ने आईबीसी को अंतिम उपाय बताते हुए कहा कि यदि कंपनी के भीतर फिर से स्थिति ठीक करने की क्षमता शेष हो तो कंपनी और कर्जदाताओं दोनों के लिए यही बेहतर है कि वे मामले का समाधान निकालने की कोशिश करें। यदि कर्जदाताओं और शेयरधारकों के बीच कोई करार नहीं है तब आपको आईबीसी सहित अन्य विकल्पों पर गौर करना होगा। (भाषा)