नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के बारे में 10 बातें...
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014 (14:54 IST)
भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजयी को शुक्रवार को 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से देने की घोषणा की गई। दोनों को यह पुरस्कार उपमहाद्वीप में बाल अधिकारों को प्रोत्साहित करने के उनके कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा। कैलाश सत्यार्थी के बारे में 10 बातें...
* कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी, 1954 को विदिशा में हुआ था जो कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पास स्थित है।
* साठ वर्षीय सत्यार्थी भारत में पैदा होने वाले आठवें नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।
* वे पेशे से इलेक्ट्रीकल इंजीनियर हैं, लेकिन उन्होंने 26 वर्ष की उम्र में अपना जीवन बच्चों को गुलामी से उबारने के काम में लगा दिया था। उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ अपने आंदोलन को 'सबके लिए शिक्षा' से भी जोड़ा और इसके लिए यूनेस्को द्वारा चलाए गए कार्यक्रम से भी जुड़े। वे ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर एजुकेशन के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। इसके साथ ही उन्हें बाल श्रम के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा के लिए देश और विदेश में बनाए गए कानूनों, संधियों और संविधान संशोधन कराने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है।
* वे 'बचपन बचाओ आंदोलन' के संस्थापक हैं जिन्होंने 80 हजार से ज्यादा बच्चों को गुलामी और बाल श्रम के पंजों से मुक्त कराया है। उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ अपने आंदोलन को 'सबके लिए शिक्षा' से भी जोड़ा और इसके लिए यूनेस्को द्वारा चलाए गए कार्यक्रम से भी जुड़े। वे ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर एजुकेशन के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं।
* उन्होंने महिलाओं को भी दासता से मुक्त कराया है, जो गंदी फैक्ट्रियों में नारकीय स्थितियों में काम करती थीं और यौन हमलों का भी शिकार थीं। सत्यार्थी ने बाल श्रम को मानवाधिकार के मुद्दे के साथ ही दान और कल्याण के साथ जोड़ने का काम किया है। उनका कहना है कि गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि और अन्य सामाजिक समस्याओं को बढ़ावा देती है। कैलाश की बात को बाद में कई अध्ययनों ने भी सही साबित किया।
* उन्होंने एक 'रगमार्क' की स्थापना की थी जिसके तहत यह प्रमाणित किया जाता है कि कालीन और रग (गलीचे) के बनाने में बालश्रम का उपयोग नहीं किया गया है। सत्यार्थी का यह ‘रगमार्क’ कैम्पेन पहले दक्षिण एशिया, फ़िर बाद में विश्व के कई देशों में ‘गुडवीव इंटरनेशनल’ के नाम से प्रचलित हुआ। कुल मिलाकर बाल-मजदूरी के खिलाफ़ जो माहौल कैलाश सत्यार्थी ने खड़ा किया है उसका प्रभाव अब सारी दुनिया में देखने को मिल रहा है।
* सत्यार्थी बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर ऐंड एजुकेशन के ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और उसकी वैश्विक सलाहकार परिषद से भी जुड़े रहे हैं। इस संस्था में दुनिया के भर के एनजीओ, शिक्षक और ट्रेड यूनियनें काम करती हैं, जो शिक्षा के लिए ग्लोबल कैंपेन चलाती हैं। वे इस समय 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।
* वे साउथ एशियन कोलिशन ऑन चाइल्ड सर्विट्यूड (एसएसीसीएस) के प्रमुख भी हैं जो कि राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और गैर-सरकारी संगठनों का संगठन है। यह संगठन सरकारों, उत्पादकों और आयातकों पर दबाव डालता है कि वे अवैध श्रम का शोषण नहीं करें।
* झूठे आरोपों और मौत की धमकियों के बावजूद उन्होंने अपने स्वप्न के लिए काम करना बंद नहीं किया। सत्यार्थी की वेबसाइट के अनुसार बाल श्रमिकों को छुड़ाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं। उनके दो साथियों की ऐसे ही अभियानों में मौत भी हो गई है। 17 मार्च 2011 में दिल्ली की एक कपड़ा फैक्टरी पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया। इससे पहले 2004 में ग्रेट रेमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान उन पर हमला हुआ था और कहा जाता है कि उन्हें डराने के लिए सर्कस के लोगों ने शेर का पिंजरा भी खोल दिया था।
* उनके काम को पहले भी विदेशों में सम्मान मिल चुका है। नोबेल पुरस्कार से पहले उन्हें 1994 में जर्मनी का 'द एयकनर इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड', 1995 में अमेरिका का 'रॉबर्ट एफ. कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड', 2007 में 'मेडल ऑफ इटेलियन सीनेट' और 2009 में अमेरिका के 'डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवॉर्ड' अवॉर्ड मिल चुके हैं।