बड़ी मुश्किल, बुलेटप्रूफ जैकेट को भी छलनी कर रही हैं आतंकियों की गोलियां

सुरेश एस डुग्गर

शनिवार, 6 जनवरी 2018 (15:29 IST)
जम्मू। पुलवामा के लैथपोरा में केरिपुब के ट्रेनिंग कैंप पर फिदायीन हमला करने वाले जैशे मुहम्मद के आतंकियों ने दो नए मोड़ कश्मीर के आतंकवाद में लाए हैं। पहला मात्र 17 साल के स्थानीय युवा को फिदायीन बनाकर हमला करवाया गया और दूसरा फिदायीनों ने ‘फौलादतोड़’ गोलियों का इस्तेमाल कर बुलेट प्रूफ शीटों और बंकरों को भेद कर सुरक्षाबलों के लिए चिंता पैदा कर दी है।
 
वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि जैशे मुहम्मद की कार्रवाइयों ने कश्मीर में आतंकवाद को नए मोड़ पर ला खड़ा किया हो बल्कि इससे पहले भी कई बार जैश की रणनीतियों, हमलों और कार्रवाइयों ने कश्मीर में आतंकवाद को जो नए मोड़ दिए थे उससे निपटने को सुरक्षाबलों को एक लंबा अरसा लग गया था।
 
लैथपोरा में जैशे मुहम्मद के फिदायीनों द्वारा फौलादतोड़ गोलियों के इस्तेमाल के बाद कश्मीर में न सिर्फ गणमान्य व्यक्तियों की सुरक्षा चिंता का कारण बन गई है बल्कि सुरक्षाकर्मी अब उन बुलेट प्रूफ जैकेटों को भी शक की नजरों से देखने लगे हैं जिनके बल पर वे फिदायीन हमलों के दौरान आगे रहने से कभी डरते नहीं थे।
 
बकौल सुरक्षाधिकारियों के, फौलादतोड़ गोलियों के इस्तेमाल के बाद कश्मीर में आतंकवाद ने नया रूख अख्तियार कर लिया है और यह चिंतनीय है। ऐसी ही चिंता माहौल उस समय वर्ष 2000 के अप्रैल महीने में भी बना था जब पहली बार जैश ने 13 साल के कश्मीरी किशोर को मानव बम के तौर पर इस्तेमाल किया था।
 
यह सच है कि कश्मीर में मानव बम की शुरुआत जैशे मुहम्मद ने ही की थी जिसे बाद में फिदायीन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा था। कश्मीर में आतंकवाद से निपटने में जुटे सुरक्षाबल अभी मानव बमों और फिदायीनों से निपटने के तरीके खोज ही रहे थे कि जैशे मुहम्मद ने 1 अक्तूबर 2001 को श्रीनगर में कश्मीर विधानसभा पर फिदायीन हमले के लिए विस्फोटकों से लदे ट्रक का इस्तेमाल कर आतंकवाद में फिर एक नया मोड़ ला दिया।
 
कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश में भी आतंकवाद को नया रुख देने वाले जैशे मुहम्मद ने ही भारतीय संसद पर हमला किया था। अब उसने बुलेट प्रूफ शीटों तथा बुलेट प्रूफ बंकरों को भेदकर एक बार फिर यह दर्शाया है कि उसके फिदायीन कश्मीर में आतंकवाद को नया मोड़ देने में सक्षम हैं।
 
नतीजतन स्थिति यह है कि जैश के ताजा हमले ने सुरक्षाबलों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। माना कि सुरक्षाबल फिदायीनों को ढेर करने में कामयाब हो रहे हैं पर अब वे जिस तरह के हथियारों के इस्तेमाल पर उतारू हो गए हैं वह उनके मनोबल पर भी प्रभाव डालने लगे हैं। अप्रत्यक्ष तौर पर सुरक्षा गलियारों में इसे स्वीकार किया जाने लगा है।

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