सेना प्रमुख की 'चेतावनी' का नहीं दिखा असर कश्मीर में

श्रीनगर। कश्मीर में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की चेतावनी और धमकी का कोई असर नहीं दिखा। कश्मीरियों ने उनकी चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए शुक्रवार को कश्मीर में पत्थर भी फेंके और साथ ही पाकिस्तानी झंडे भी फहराए। हालांकि इस बीच राज्य सरकार ने मुठभेड़ स्थलों के तीन किमी के क्षेत्रों को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया है।
थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के सेना के खिलाफ जाने वालों पर सख्ती करने वाला बयान देने के दो दिन बाद ही कश्मीर में उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। शुक्रवार को श्रीनगर की जामा मस्जिद के पास रावत के खिलाफ प्रदर्शन किया गया। स्थानीय नागरिकों ने पत्थरबाजी की और पाकिस्तानी झंडे लहराए।
 
जनरल ने कहा था कि जम्मू कश्मीर में स्थानीय लोग जिस तरह से सुरक्षाबलों को अभियान संचालित करने में रोक रहे हैं उससे अधिक संख्या में जवान हताहत हो रहे हैं तथा कई बार तो वे आतंकवादियों को भागने में सहयोग करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि हम स्थानीय लोगों से अपील करते हैं कि अगर किसी ने हथियार उठा लिए हैं और वह स्थानीय लड़के हैं। अगर वे आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहना चाहते हैं, आईएसआईएस और पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं तो हम लोग उन्हें राष्ट्र विरोधी तत्व मानेंगे और उनके खिलाफ एक्शन लेंगे।
 
मिली जानकारी के मुताबिक, श्रीनगर के पुराने शहर के कई इलाकों में जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन हुए हैं। इस दौरान उपद्रवियों द्वारा सुरक्षाबलों पर पथराव भी किया गया है। भीड़ को बेकाबू होता देख सुरक्षाबलों की ओर से भी हालात को काबू करने के लिए आंसूगैस के गोले दागे गए हैं। कश्मीर में हुए इन प्रदर्शनों के दौरान उपद्रवियों द्वारा पाकिस्तानी झंडे भी लहराए गए हैं। जानकारी के मुताबिक, हिंसक प्रदर्शनों के बाद सुरक्षा एजेंसियों के आला अधिकारी कश्मीर के हालातों पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।
 
अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर में फिर से हिंसा और उपद्रव का दौर का शुरू करने की साजिशें तेज हो गईं हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में मार्च से हिंसा भड़कने की आशंका जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलगाववादियों और आतंकी संगठनों के गठजोड़ ने मार्च से फिर से व्यापक विरोध प्रदर्शन और हमले की साजिश बुनी है। हवाला के जरिए फंडिंग तेज हो रही है।
 
पत्थरबाजों को दिहाड़ी भी मिलने लगी है। केंद्र सरकार ने पत्थरबाजी की घटनाएं बंद होने के पीछे नोटबंदी के असर को कारण बताया था। एजेंसियों के अनुसार, अब यह असर समाप्त हो रहा है। दूसरी ओर, केंद्र की रिपोर्ट के उलट रियासत सरकार मानती है कि कश्मीर हिंसा पर नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ा था।
 
सेना प्रमुख रावत ने यह बयान उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा में एक मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों पर स्थानीय नागरिकों द्वारा पत्थरबाजी की घटना के बाद दिया था। पारे मोहल्ला में छुपे हुए आतंकवादियों के खिलाफ अभियान शुरू होने से पहले तीन सैनिकों को भारी पथराव का सामना करना पड़ा था।
 
पथराव करने वालों के कारण सावधान होकर आतंकवादियों को आगे बढ़ रहे सैनिकों पर हथगोला फेंकने और एके राइफल से भारी गोलीबारी करने का मौका मिल गया। इसमें तीन जवान शहीद हो गए और सीआरपीएफ के कमांडिंग ऑफिसर सहित कुछ अन्य घायल हो गए। एक आतंकवादी मौके से फरार होने में सफल रहा था।
 
दूसरी तरफ, कश्मीर कश्मीर घाटी में अधिकारियों ने जनता से उन स्थलों से दूर रहने को कहा है जहां सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ चल रही हो। साथ ही तीन जिलों के ऐसे स्थलों के तीन किमी के दायरे में निषेधाज्ञा लगाने का निर्णय लिया है। एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि श्रीनगर, बड़गाम और शोपियां के जिला प्रशासकों ने लोगों को हताहत होने से बचाने के लिए उन्हें उन स्थलों की ओर नहीं आने और न ही भीड़ लगाने को कहा है, जहां सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ चल रही हो।
 
सेना प्रमुख के बयान का शुक्रवार को रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी समर्थन किया। पर्रिकर ने कहा है कि आतंकियों की मदद करने वाले स्थानीय लोगों से निपटने के लिए सेना आजाद है। साथ ही पर्रिकर ने यह भी स्पष्ट किया कि सेना हर एक कश्मीरी को आतंकियों से सहानुभूति रखने वाला नहीं मानती।

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