तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भारत की विदेश नीति का नया इतिहास लिखा जा रहा है। 1947 के बाद भारत के चीन के आपसी रिश्तों में खटास किसी से छिपी नहीं है। दोनों ही देश सीमा विवाद को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए थे, तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन के साथ संबंध सुधारना और विश्व के मंच पर भारत को चीन के बराबर खड़ा करना था।
पिछले 5 सालों में मोदी की कूटनीति ने यह संभव कर दिखाया। पीएम मोदी की अपनी सफल कूटनीति से जहां आज विश्व मंच पर भारत, चीन को बराबरी की टक्कर देता नजर आ रहा है तो चीन ने भी अब भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। पीएम मोदी के आक्रामक रुख और कूटनीति के चलते अब चीन को भी मानना पड़ा है कि भारत के बिना एशिया की 21वीं सदी असंभव है।
महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच चली 5 घंटे की मुलाकात और बातचीत को अलग ही नजरिए से देखा जा रहा है। दोनों ही देशों के बीच आपसी संबंध, आतंकवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई। इस दौरान दोनों नेताओं ने आतंकवाद और कट्टरपंथ की चुनौतियों का मिलकर सामना करने का संकल्प लिया। दोनों ही नेताओं ने माना कि आतंक और धार्मिक कट्टरता दोनों देशों के लिए साझा चुनौती है और इसे मिलकर ही निपटना होगा।
आतंकवाद पर भारत और चीन का साथ आना भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जिस तरह चीन ने बार-बार अपना रुख बदला, उसके बाद अब आतंकवाद के मुद्दें पर एक होना इशारों ही इशारों में पाकिस्तान के लिए एक बड़ा संदेश है। विदेश सचिव के मुताबिक लगभग ढाई घंटे की मुलाकात में दोनों नेताओं के बीच विजन, सरकार की प्राथमिकताओं के साथ ही आर्थिक विषयों पर भी बात हुई।
महाबलीपुरम में मोदी और जिनपिंग की एकसाथ सैर की जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे यह बताती हैं कि दोनों ही देशों के बीच संबंधों पर 7 दशकों से जमी बर्फ अब पिघलने लगी है। भारत को चीन के साथ संबंधों में बड़ी कामयाबी पिछले 5 सालों में ही हासिल हुई है। इस दौरान भारत को लेकर चीन भी मानने लगा है कि अगर दोनों देशों के संबंध अच्छे नहीं रहते हैं तो एशिया का उदय असंभव है।
पीएम मोदी की कूटनीति के आगे आज चीन, भारत के सामने सरेंडर करता हुआ दिखाई दे रहा है। जो चीन अपनी जिद से अमेरिका जैसे देश को भी झुकने के लिए मजबूर कर देता है, वो खुद अब यह सोचने के लिए मजबूर हुआ है कि अगर भारत से सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से निपटा लिया जाए तो यह दुनिया के सामने एक मिसाल बन जाएगा। इससे दुनिया को संदेश मिलेगा कि कैसे दो ताकतें एक-साथ आ सकती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने आज अपनी आक्रामक विदेश नीति के चलते चीन पर एक दबाव बना लिया है। कश्मीर के मुद्दे पर लंबे समय तक पाकिस्तान के साथ खड़ा रहने वाला चीन अब उससे दूरी बनाने लगा है। पिछले दिनों कश्मीर पर चीन ने अपने बयान से जैसा यू-टर्न लिया, उसको मोदी डिप्लोमेसी की एक बड़ी जीत माना जा रहा है।
आज चीन और भारत के संबंध नए दौर में हैं। पिछले 5 सालों में मोदी और जिनपिंग आधा दर्जन से अधिक बार मिल चुके हैं और जो यह साफ बताता है कि अब दोनों देश पुरानी बातें भुलाकार नया इतिहास लिखने की दहलीज पर खड़े हैं।