बागपत के सिसाना में मिले महाभारतकालीन अवशेष, हो सकते हैं कई रहस्य उजागर

हिमा अग्रवाल

बुधवार, 29 अक्टूबर 2025 (21:20 IST)
Uttar Pradesh News: उत्तर भारत की प्राचीन सभ्यताओं की जब भी बात होती है, तो यमुना तट का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है। इसी तट से सटे उत्तर प्रदेश सिनौली और बरनावा के बाद अब बागपत का सिसाना एक नए रहस्य के केंद्र बन रहा है। यहां के खंडवारी वन क्षेत्र में मिले पुरातात्विक साक्ष्य न केवल उत्तर भारत की प्राचीन सभ्यताओं की कहानी कहते हैं, बल्कि महाभारत युग की ऐतिहासिक स्मृतियों को भी पुनर्जीवित कर रहे हैं। 
 
वरिष्ठ इतिहासकार एवं पुरातत्वज्ञ डॉ. अमित राय जैन द्वारा किए गए स्थल निरीक्षण में जो तथ्य सामने आए हैं। उन्होंने सिसाना को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अनुसंधान के केंद्र में ला खड़ा किया है। अमित राय के निरीक्षण के बाद एक बात सामने आई है कि सिसाना केवल एक गांव नहीं, बल्कि सभ्यताओं का क्रमिक विकास जीता जागता उदाहरण है, जो महाभारत की ऐतिहासिक स्मृतियों को पुनर्जीवित कर रहा है।
 
धरती की परतों से झांकती दो सभ्यताएं : OCP और PGW
सतही सर्वेक्षण में प्राप्त मृदभांड (Pottery) के अवशेष इस क्षेत्र की बहुस्तरीय सभ्यता की कहानी बयां करते हैं। सबसे प्राचीन परत में मिली ओकर कलर्ड पॉटरी (OCP) लगभग 4000–5000 वर्ष पुरानी मानी जा रही है। यह उस दौर की निशानी है जब उत्तर भारत में कृषि, ग्राम-आधारित जीवन और स्थानीय तकनीकी कौशल आकार ले रहे थे, यानी जब मानव समाज कृषि और मिट्टी के घरों के माध्यम से स्थायी जीवन की दिशा में अग्रसर था। इसके ऊपर की परत में मिली पेंटेड ग्रे वेयर (PGW) पोट्री, वही प्रसिद्ध ग्रे मृदभांड परंपरा जिसे प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद प्रो. बीबी लाल ने महाभारतकालीन संस्कृति से जोड़ा था। हस्तिनापुर, बरनावा और अब सिसाना तीनों स्थलों से समान पोट्री प्राप्त होना यह सिद्ध करता है कि उस काल में समान सांस्कृतिक लय थी या आयरन-एज सभ्यता का रही होगी जो उस युग को लोहकारी, शिल्प और सामाजिक संरचना नई ऊंचाइयों पर ले गया होगा और आज भी पांडव युग की सांसें हमारी धरती अपने में सहेजे हुए है।
लौह गलन स्थल तकनीकी और धार्मिक आस्था का प्रतीक
खंडवारी वन क्षेत्र में मिले लौह गलन (Iron Smelting) स्थल के अवशेष भट्टियों के स्लैग और कोर यह प्रमाणित करते हैं कि यहां प्राचीन काल में धातु उत्पादन की तकनीक विकसित थी। भारतीय परंपरा में अग्नि और धातु दोनों को दैवी तत्व माना गया है। जिसके चलते उस समय यहां केवल औद्योगिक गतिविधि नहीं, बल्कि कला और आस्था का संगम भी रहा होगा। यहां मिली मानव-निर्मित संरचना, जो किसी कोश-मीनार जैसी दिखती है, संभवतः उस काल का नाविकों और दूरस्थ यात्रियों को बस्ती का दिशा संकेत स्तंभ देने वाली रही होगी। वहीं मिट्टी के चूल्हे, अनाज के कण और हड्डियों के अवशेष यह सिद्ध करते हैं कि यहां पर दीर्घकालीन मानव बसावट रही होगी। इस परिदृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि मानो यह भूमि कहती हो, यहां मनुष्य और संस्कृति दोनों बसे हैं। यह केवल कृषि का नहीं, बल्कि कौशल, धातु और संस्कृति का संगमस्थल था।
 
लोककथा और पुरातत्व का संगम: 'खंडवारी' या 'खांडवप्रस्थ'
स्थानीय पंरपराओं और लोगों के मुताबिक इस वन क्षेत्र को पहले खांडवप्रस्थ कहा जाता था, यह वही नाम है जो महाभारत में पांडवों के प्रारंभिक प्रवास स्थल के रूप में मिलता है। स्थानीय लोग कहते हैं कि सदियों पूर्व किसी महामारी के बाद यह स्थल निर्जन हुआ और उसके वंशज आज के सिसाना में बस गए। जिसके चलते आज भी ग्रामीण इस स्थल को पांडवकालीन धरोहर मानते हैं और इसके संरक्षण की मांग कर रहे हैं। यह लोककथा केवल स्मृति नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक चेतना का प्रमाण है। जो अब पुरातात्विक साक्ष्यों से पुष्ट होती दिखाई देती है, जिससे स्पष्ट है कि इतिहास और संस्कृति यहां  एक-दूसरे को पूरा करते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से अद्वितीय स्थल को सजोना होगा
इतिहासकारों और स्थानीय नागरिकों का मत है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इस स्थल को तत्काल संरक्षित क्षेत्र घोषित कर वैज्ञानिक उत्खनन कराना चाहिए। यहां प्राप्त मिट्टी के चूल्हे, अनाज के कण और मानवीय हड्डियों के अवशेष बताते हैं कि यह भूमि जीवन, कला, श्रम और आस्था का संगम थी। यही वे तत्व हैं जिन्होंने भारतीय समाज को उसकी ग्राम्य और आत्मनिर्भर संस्कृति का आधार दिया। उत्खनन होने पर सिसाना न केवल उत्तर भारत की ऐतिहासिक पहचान देगा, बल्कि यहां के लोगों के लिए सांस्कृतिक पर्यटन और रोजगार के नए द्वार भी खोलेगा।
 
जहां इतिहास मिट्टी में सोया था, वहां संस्कृति फिर से जाग उठी है
आज जब एक बार इतिहास फिर से सिसाना की तरफ देख रहा है, तो लगता है मानो यह माटी कह रही है कि सभ्यता केवल इतिहास की स्मृति नहीं, वह आज भी इस भूमि की धड़कनों में जीवित है। यह खोज हमें याद दिला रही है कि भारत की असली शक्ति उसकी संस्कृति, परंपरा और स्मृति में निहित निरंतरता है। इसलिए सिसाना कह रहा है कि मैंने युगों को आते-जाते देखा है, मेरे कण-कण में वह कथा अभी भी जीवित है, जिसे तुम ‘महाभारत’ कहते हो।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 

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