संविधान के दायरे में ही करता हूं काम : मुख्यमंत्री बनर्जी के साथ टकराव वाली अनेक स्थितियों का उल्लेख करते हुए धनखड़ ने कहा कि कि वह संवैधानिक सीमा से परे कुछ नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि मेरे मन में बड़ी पीड़ा होती है और मैं चिंता और चिंतन दोनों करता हूं कि मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल सार्वजनिक रूप से कैसे लड़ सकते हैं? मेरा अथक प्रयास रहा है और आगे भी रहेगा कि राज्यपाल की हैसियत से मैं सरकार की मदद करूं, कंधे से कंधा मिलाकर सरकार का सहयोग करूं, लेकिन एक पक्ष से यह संभव नहीं है।
उन्होंने 7 मार्च की देर रात बाद दो बजे पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा का सत्र आहूत करने को लेकर हाल के विवाद का जिक्र भी किया। बाद में नए कैबिनेट प्रस्ताव में इस समय को बदलकर अपराह्न 2 बजे कर दिया गया था। समय को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब 24 फरवरी को धनखड़ ने ममता बनर्जी कैबिनेट के एक प्रस्ताव के आधार पर 7 मार्च को रात 2 बजे विधानसभा का सत्र बुलाया, जिसे बाद में टंकण संबंधी त्रुटि के रूप में स्पष्ट किया गया था।
धनखड़ ने कहा कि लोगों को भले ही जानकारी न हो लेकिन मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) के साथ मेरे व्यक्तिगत संबंध बहुत मजबूत हैं, हमारा भाई-बहन जैसा रिश्ता है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मुझे सरकार के मित्र, मार्गदर्शक और दार्शनिक के रूप में कार्य करना है। लोकतंत्र में मुख्यमंत्री का दर्जा बहुत बड़ा होता है, मुख्यमंत्री के पीछे लोगों की स्वीकृति होती है। यह जनादेश बहुत बड़ा है।
देश की बड़ी नेता हैं ममता : पश्चिम बंगाल सरकार विशेष रूप से मुख्यमंत्री बनर्जी के साथ टकराव की खबरों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने बहुत बार कहा है और आज देश के एक वरिष्ठ राजनीतिक व्यक्तित्व के सामने भी कह रहा हूं। मैंने माननीय मुख्यमंत्री (बनर्जी) को बुलाया और कहा कि आप देश की जानी-मानी नेता हैं। इनका (मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का) नाम लिया और कहा कि इस श्रेणी में 3-4 से ज्यादा लोग नहीं हैं। केंद्र मुझे जो भी सुझाव देगा, मैं उसे बहुत गंभीरता से लूंगा। मेरा प्रयास रहेगा कि उसके अनुरूप कार्य हो, बशर्ते उसमें कोई संवैधानिक बाधा नहीं हो।