मोहन भागवत का 75वां पड़ाव क्या बदलेगा देश की राजनीति की दिशा?

संदीपसिंह सिसोदिया

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025 (17:48 IST)
Meaning of statement of RSS chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 11 सितंबर 2025 को 75 वर्ष के हो जाएंगे और इसके ठीक छह दिन बाद, 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आयु के इसी पड़ाव पर पहुंचेंगे। यह संयोग भारतीय राजनीति में एक तीव्र चर्चा को जन्म दे रहा है, खासकर भागवत के हालिया बयान के बाद, जिसमें उन्होंने कहा कि 75 वर्ष की आयु में नेताओं को रुक जाना चाहिए और दूसरों के लिए जगह छोड़ देनी चाहिए। यह बयान 9 जुलाई 2025 को नागपुर में आरएसएस विचारक स्वर्गीय मोरोपंत पिंगले की जीवनी के विमोचन के दौरान दिया गया, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
 
भागवत का बयान और उसका संदर्भ : नागपुर में पुस्तक विमोचन के दौरान, भागवत ने मोरोपंत पिंगले के एक प्रसंग का जिक्र किया, जहां पिंगले ने 75 वर्ष की आयु में शॉल ओढ़ाए जाने को सेवानिवृत्ति का संकेत माना था। भागवत ने उद्धृत किया कि जब आपको 75 साल का होने पर शॉल ओढ़ाई जाती है, तो इसका मतलब है कि अब आपकी उम्र हो चुकी है; अब रुक जाएं और दूसरों को मौका दें। भागवत के इस बयान को केवल एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं, बल्कि एक गहरे वैचारिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। उनके इस कथन ने न केवल संघ के भीतर, बल्कि भाजपा और व्यापक राजनीतिक परिदृश्य में भी अटकलों को जन्म दिया है।
 
उल्लेखनीय है कि भागवत और मोदी दोनों ही सितंबर 2025 में 75 वर्ष के हो रहे हैं। विपक्षी नेताओं, जैसे कांग्रेस के जयराम रमेश और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के संजय राउत ने इसे मोदी के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश के रूप में देखा। रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया- 'बेचारे पुरस्कार विजेता प्रधानमंत्री! स्वदेश लौटते ही आरएसएस प्रमुख ने याद दिलाया कि वह 17 सितंबर 2025 को 75 वर्ष के हो जाएंगे। लेकिन प्रधानमंत्री भी आरएसएस प्रमुख को बता सकते हैं कि वह भी 11 सितंबर को 75 के हो रहे हैं! एक तीर, दो निशाने!'
 
संघ और भाजपा पर प्रभाव : आरएसएस, भाजपा की वैचारिक जननी के रूप में, भारतीय राजनीति में गहरा प्रभाव रखता है। भागवत ने अपने कार्यकाल में संघ को सामाजिक समरसता, हिंदुत्व, और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर मजबूत किया है और उनके फैसलों का असर भाजपा की नीतियों और सरकार के कामकाज पर स्पष्ट दिखता है। उनके इस बयान ने यह सवाल उठाया है कि क्या वह स्वयं इस सिद्धांत का पालन करेंगे और 75 वर्ष की आयु में सरसंघचालक पद से हट जाएंगे। हालांकि, एक वरिष्ठ आरएसएस कार्यकर्ता ने इस बयान की संदर्भ से बाहर निकालकर गलत व्याख्या करने का आरोप लगाया, यह कहते हुए कि भागवत केवल पिंगले के हास्य और नम्रता को उजागर कर रहे थे न कि कोई सेवानिवृत्ति नीति की घोषणा कर रहे थे। यदि भागवत सेवानिवृत्ति का निर्णय लेते हैं, तो यह संघ की परंपरा में एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा। 
 
मोदी और भाजपा की अनौपचारिक परंपरा : भागवत का बयान उस समय आया है जब भाजपा में 75 वर्ष की आयु के बाद नेताओं को सक्रिय भूमिकाओं से हटाने की अनौपचारिक परंपरा चर्चा में है। 2014 में, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसे 75 वर्ष की आयु सीमा से जोड़ा गया। हालांकि, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया है कि भाजपा के संविधान में ऐसी कोई औपचारिक सेवानिवृत्ति नीति नहीं है। शाह ने मई 2023 में कहा कि मोदी जी 2029 तक नेतृत्व करते रहेंगे। सेवानिवृत्ति की अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है। फिर भी, भागवत का बयान विपक्ष को यह सवाल उठाने का मौका देता है कि क्या मोदी इस परंपरा का पालन करेंगे, खासकर जब वह स्वयं 75 वर्ष के हो रहे हैं।
 
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और अटकलें : विपक्ष ने भागवत के बयान को तुरंत भुनाने की कोशिश की। संजय राउत ने कहा कि मोदी ने आडवाणी, जोशी और जसवंत सिंह जैसे नेताओं को 75 वर्ष की आयु के बाद रिटायर किया। अब देखते हैं कि वह खुद इस नियम का पालन करते हैं या नहीं। कांग्रेस के अभिषेक सिंघवी ने इसे 'बिना अमल का उपदेश' करार देते हुए कहा कि मार्गदर्शक मंडल को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई, लेकिन वर्तमान नेतृत्व को इससे छूट दी जा रही है। दूसरी ओर, भाजपा और आरएसएस के सूत्रों ने इन अटकलों को खारिज किया, यह दावा करते हुए कि भागवत का बयान केवल पिंगले की नम्रता को दर्शाता है और इसका मोदी या स्वयं भागवत से कोई लेना-देना नहीं है।
 
भागवत का यह बयान, चाहे अनायास हो या सोचा-समझा, भारतीय राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है। यदि वह स्वयं सेवानिवृत्त होते हैं, तो यह संघ के भीतर और भाजपा के साथ उसके संबंधों में नए समीकरण ला सकता है। दूसरी ओर, यदि वह बने रहते हैं तो यह मोदी के लिए भी एक अपवाद के रूप में देखा जा सकता है, जो उनकी निरंतर नेतृत्व की संभावना को मजबूत करेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि भागवत ने 2019 में कहा था कि मोदी इस 75 वर्ष की नीति के अपवाद हैं, जिससे इस बयान की वर्तमान व्याख्या और जटिल हो जाती है।
 
सितंबर 2025 का महीना निश्चित रूप से भारतीय राजनीति के लिए निर्णायक होगा। भागवत का बयान और उनकी संभावित विदाई न केवल संघ और भाजपा के भविष्य को प्रभावित करेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि क्या भारत की राजनीति में नई पीढ़ी को अवसर मिलेगा या अनुभव को प्राथमिकता दी जाएगी। इस बदलाव के संकेतों पर सभी की नजरें टिकी हैं और समय ही बताएगा कि क्या यह बयान एक वैचारिक सिद्धांत है या एक राजनीतिक संदेश।

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