नाबालिग दोषी की रिहाई : महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में मतभेद

रविवार, 20 दिसंबर 2015 (19:50 IST)
नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2012 को राष्ट्रीय राजधानी में हुए बहुचर्चित सामूहिक बलात्कार कांड के नाबालिग दोषी की रिहाई के मुद्दे पर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की राय बंटी हुई है। कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि नाबालिग दोषी को बेहतर तरीके से जिंदगी जीने का एक दूसरा मौका दिया जाना चाहिए, जबकि कुछ कार्यकर्ता उसे सख्त सजा दिए जाने की दलीलें दे रहे हैं।
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव कविता कृष्णन ने कहा, 16 दिसंबर 2012 को जो कुछ हुआ वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन इस बात पर गौर करना काफी अहम है कि ऐसे किशोर वयस्कों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। 
 
कविता ने कहा, मेरा मानना है कि लड़के को जिंदगी जीने का एक और मौका मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, कानून का पालन किया जाना चाहिए। कानून के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के किसी लड़के को जेल नहीं भेजा जाता। उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखा गया। 
 
यहां तक कि उच्च न्यायालय ने भी कहा कि कानून का पालन किया जाना चाहिए। किशोर की रिहाई के खिलाफ मुहिम चला रही आइसा कार्यकर्ता सुचेता डे ने कहा, मैं सभी से अपील करती हूं कि तथ्यों पर विचार करें और ऐसे असल मुद्दों को समझें जिनसे बलात्कार के मामलों में संघर्ष करना पड़ता है। 
 
सुचेता ने कहा, ऐसी ज्यादातर शिकायतकर्ताओं को इंसाफ दिलाने में यह व्यवस्था नाकाम रही है जो बलात्कार के नए कानूनों के तहत इंसाफ मांगने के लिए आगे आए। उन्होंने कहा, इसके बावजूद व्यवस्था चलाने वाले मौजूदा कानूनों को लागू करने और हर मामले में इंसाफ सुनिश्चित करने की बजाय एक और कड़े कानून की तरफ ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। (भाषा) 

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