यह विवाद तब शुरू हुआ जब ममता, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक से बाहर चली गईं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष की एकमात्र प्रतिनिधि होने के बावजूद उन्हें भाषण के बीच में ही अनुचित तरीके से रोक दिया गया। उनके दावों के तुरंत बाद केंद्र ने खंडन जारी करते हुए कहा कि उनका बयान भ्रामक है।
बैठक में मौजूद रहीं सीतारमण ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, उन्होंने (ममता) पूरे समय तक बोला। हमारी मेज के सामने लगी स्क्रीन पर समय दिखाया जाता रहा। कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों ने अपने निर्धारित समय से अधिक समय तक बात की। उनके अनुरोध पर, बिना किसी शोर-शराबे के अतिरिक्त समय दिया गया। माइक बंद नहीं किए गए, किसी के लिए नहीं, खासतौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए नहीं। ममता जी ने झूठ फैलाना चुना है। मुझे खुशी है कि वह उपस्थित रहीं।
उन्होंने कहा, मुझे तब खुशी हुई जब उन्होंने कहा कि वे बंगाल और वास्तव में पूरे विपक्ष के लिए बोल रही हैं। मैं उनकी बातों से सहमत या असहमत हो सकती हूं। लेकिन अब जब वे बाहर बेबुनियाद बातें कह रही हैं, तो मैं केवल यही निष्कर्ष निकाल सकती हूं कि वे इंडिया गठबंधन को खुश रखने का प्रयास कर रही हैं।
इससे पहले ममता ने कहा था, मैंने बैठक का बहिष्कार किया है। (आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री) चंद्रबाबू नायडू ने 20 मिनट तक बात की। असम, गोवा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने 10 से 12 मिनट तक बात की। लेकिन मुझे अपने भाषण के पांच मिनट बाद ही रोक दिया गया। मैंने कहा कि यह अनुचित है।
ममता ने कहा, मैं बैठक में भाग लेने वाली विपक्ष की एकमात्र सदस्य हूं। मैंने इसे व्यापक हित के लिए किया क्योंकि मेरा मानना है कि सहकारी संघवाद को मजबूत किया जाना चाहिए। कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और इंडिया गठबंधन के अन्य सहयोगियों ने नीति आयोग की नौवीं शासी परिषद की बैठक का बहिष्कार किया।
Edited By : Chetan Gour