जोशीमठ के नगर पालिका क्षेत्र को किया गया आपदाग्रस्त घोषित, जल शक्ति मंत्रालय की एक्सपर्ट टीम पहुंची

एन. पांडेय

रविवार, 8 जनवरी 2023 (23:21 IST)
जोशीमठ/ देहरादून। हिन्दुओं और सिखों के प्रमुख तीर्थ स्थानों का गेटवे जोशीमठ में जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आंदोलन अपनी तमाम मांगों को जोर देने के लिए जारी है। यह शहर एक पौराणिक और धार्मिक स्थल के अलावा चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव भी है।

हिमालय के ऊंचे इलाकों में ट्रैक करने वाले टूरिस्टों की पसंदीदा भी जगह है। भारत की सबसे ऊंची हिमालय की चोटी नंदा देवी का भी यह रास्ता है यहीं से होकर विश्व धरोहर घोषित फूलों की घाटी में पहुंचने का मार्ग भी पड़ता है। सिखों के गुरु गोविन्द सिंह जी तपस्थली हेमकुंड जाने के लिए भी यही रास्ता है।

रविवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से इस शहर को लेकर प्रधानमंत्री ने भी फोन से बातचीत की। शहर की चिंता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीके मिश्रा ने भी एक उच्च स्तरीय बैठक उत्तराखंड के उच्चाधिकारियों को वीडियो कॉन्फेंसिंग से जोड़कर की।

बैठक में उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी एसएस संधू और डीजीपी अशोक कुमार और चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने उनको वस्तुस्थिति से अवगत कराया।

आपदा प्रबंधन के अधिकारियों ने जोशीमठ के नगर पालिका क्षेत्र को आपदाग्रस्त घोषित कर इसे असुरक्षित करार देते हुए यहां रहने वाले लोगों को घर खाली करने के लिए कहा है। चमोली जिला आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार जोशीमठ में अब तक 561 मकानों में दरारें आ चुकी हैं।
 
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति लंबे समय से इस भू धसाव को लेकर प्रशासन को खबरदार करती रही थी। समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि 23 दिसंबर 2003 को भी उन्होंने भू धसाव की आशंका के चलते एक पत्र तत्कालीन राष्ट्रपति को दिया था, लेकिन लोभ और स्वार्थ की वशीभूत सरकार- सत्ताओं ने इस नगर के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को न देखा और ना ही सुना।

उन्होंने कहा कि हमने जयप्रकाश कम्पनी की विष्णुप्रयाग परियोजना का उदाहरण देते हुए कहा था कि यदि जोशीमठ के नीचे इसी तरह सुरंग आधारित परियोजना ( जो तब प्रस्तावित भर थी) बनाई जाएगी तो इस नगर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। राष्ट्रपति के यहां से संबंधित परियोजना निर्माण करने वाली कम्पनी को संबोधित पत्र भी आया, जिसमें हमारी आशंकाओं का समाधान करने को कहा गया। लेकिन परियोजना निर्माता कंपनी ने हमारी आशंकाओं और राष्ट्रपति के पत्र- दोनों को ही तवज्जो नहीं दी।

साल 2005 में परियोजना की जनसुनवाई के समय भी अपनी शंकाएं व्यक्त की। बीते 24 दिसंबर 2009 को जब इस परियोजना की सुरंग में टीबीएम के ऊपर बोल्डर गिरने से, मशीन फंस गई और उस जगह से 600 लीटर पानी प्रति सेकंड निकलने लगा उसके बाद भी न तो प्रशासन जागा न ही सरकार।

सुरंग से बहते पानी से आसन्न खतरे को भांपते हुए जोशीमठ में लम्बा आंदोलन चलाया गया था।  तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री, जिला प्रशासन की मध्यस्थता में एनटीपीसी से समझौता हुआ।

समझौते के तहत एनटीपीसी को न सिर्फ जोशीमठ के पेयजल की  दीर्घकालिक व्यवस्था करनी थी अपितु शहर के सभी घर-मकानों के बीमा भी करना था ताकि यदि मकानों को नुकसान हो तो भरपाई भी हो सके।
 
समझौते की यह मांग इसलिए पूरी नहीं हुई क्योंकि उसी समझौते के तहत एक हाई पावर कमेटी को परियोजना की समीक्षा भी करनी थी, किंतु वह कमेटी कभी बैठी ही नहीं। इस तरह जोशीमठ के भविष्य व अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगने दिया गया।
 
एनटीपीसी और सरकार बार बार यही कहती रही कि परियोजना की सुरंग जोशीमठ से दूर है। हमारा सवाल है कि बाईपास सुरंग कहां है? उसकी स्थिति जोशीमठ के नीचे ही है और वह विस्फोटों के जरिये ही बनी है। लोगों को आशंका है कि उसमें कुछ दिन पहले तक लगातार विस्फोट किए जा रहे थे जो जोशीमठ में आज हो रहे भू धसाव का मुख्य कारण हैं। अन्य कारणों ने इस प्रक्रिया को तीव्र करने में योगदान किया है।
 
आंदोलन की चेतावनी : संघर्ष समिति का कहना है कि यदि सरकार व प्रशासन समय रहते जनता की सुन लेते और कार्रवाई करते तो यह नौबत नहीं आती। पिछले 14 महीने से लगातार इस पर बोलते-लिखते-लड़ते रहने के बावजूद सरकार नहीं जागी और आज हालात काबू से बाहर हैं।

हमें उम्मीद थी कि आज जब दुनिया भर में जोशीमठ को लेकर लोग चिंतित हैं, तब सरकार कुछ संवेदनशील होकर तथा राजनीतिक संकीर्णता से ऊपर उठकर कार्य करेगी। इसी उम्मीद के साथ सीएम के जोशीमठ आगमन पर शनिवार को पुराने मतभेद भुलाकर जनता के तमाम आक्रोश के बावजूद हमने संघर्ष समिति की ओर से शांतिपूर्ण बातचीत का प्रस्ताव  स्वीकार किया।

संघर्ष समिति ने इस पर यही निर्णय लिया है कि जब तक सभी विस्थापित होने वालों के साथ एक समान न्याय नहीं हो जाता व जब तक उपरोक्त मांगों पर ठोस जमीनी कार्रवाई नहीं दिखती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
 
एक्सपर्ट टीम देहरादून पहुंची : भू धसाव के कारणों का पता लगाने के लिए जल शक्ति मंत्रालय के द्वारा गठित एक्सपर्ट महकमों की टीम रविवार देर शाम देहरादून पहुँच गयी है।

टीम में जल शक्ति मंत्रालय के अलावा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सहित विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं।सोमवार को जल शक्ति मंत्रालय की टीम जोशीमठ रवाना होगी।

जल शक्ति मंत्रालय ने जोशीमठ भू धंसाव और इसके प्रभाव का तेजी से अध्ययन करने के लिए दो दिन पहले एक समिति का गठन करने की घोषणा की थी। इस समिति में नमामि गंगे के अधिकारियों के साथ ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधि, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिक, केंद्रीय जल आयोग के अधिकारी, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिक भी शामिल हैं।

तीन दिनों के भीतर इसको अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपनी है। समिति में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि उनकी टीम बस्तियों, इमारतों, राजमार्गों, बुनियादी ढांचे और नदी प्रणाली पर जमीन धंसने के प्रभावों का पता लगाएगी।
दूसरी तरफ केंद्र किस तरह से जोशीमठ भू धसाव में सहयोग करें इसके लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के चार अधिकारी सोमवार को देहरादून पहुंचेंगे  आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों के साथ उनकी बैठक में आगे के सहयोग को सुनिश्चित किया जाएगा।

जोशीमठ में रेट्रोफिटिंग को लेकर सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) की टीम सोमवार को मुख्यमंत्री से मिलेगी। यहां के वैज्ञानिकों की टीम जोशीमठ में रेट्रोफीटिंग के रास्ते सुझाएगी।

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