उनकी गहरी, साफ़ और भावपूर्ण आवाज़ को कितनी ही बार सुना और गुना। उनके कृष्ण भजन और शास्त्रीय गीत तो सुने ही उनका गाया शिवमहिम्न स्त्रोत वर्षों से घर की सुबह का हिस्सा है। इसीलिए इस आध्यात्मिक और पवित्र आवाज़ के मालिक, सरस्वती पुत्र, संगीत मार्तण्ड, पद्म विभूषण पंडित जसराज से रुबरू मिलना मेरे लिए ना केवल बिरला और महत्वपूर्ण संयोग था बल्कि ये बेहद रोमांचित करने वाला भी था।
इंदौर के यशवंत क्लब में पंडितजी और उनकी सुपुत्री दुर्गा जसराज की ‘आइडिया जलसा’ के लिए चल रही पत्रकार वार्ता ख़त्म होने का हम बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। हम यानी मेरे साथ वेबदुनिया के दो कैमरामेन साथी और देवास से ख़ास तौर पर पंडितजी और इस मुलाकात को शूट करने आईं सुश्री मधुलिका चौधरी। हम वहाँ रेस्टोरेंट में कुर्सियाँ और गुलदस्ता जमाए बैठे थे। वहाँ की लाइटिंग से कैमरामैन और मधुलिका जी दोनों संतुष्ट नहीं थे। पर्दे खोलकर रोशनी बढ़ाई तो कुछ मामला ठीक हुआ। बाहर धूप तेज़ थी और शायद पंडितजी के लिए ठीक नहीं होगा इसलिए बाहर शूट करने का ख़याल छोड़ दिया।
ख़ैर, सभी पत्रकारों के सवालों का जवाब पूरी तसल्ली से देने के बाद हमारी बारी आ ही गई। रेस्टोरेंट का वो भारी दरवाज़ा खुला और पंडितजी तेज़ कदमों से चलते हुए आए। थोड़ा भीतर आते ही वो एकदम फिर दरवाज़े की तरफ पलट गए और बोले – मैं यहाँ नहीं बैठूँगा!! .... हम सब सन्न, क्या ग़लती हो गई? फिर तुरंत बोले यहाँ प्याज की गंध आ रही है। मैं सहन नहीं कर पाऊँगा, कहीं और बैठते हैं। और बाहर निकल गए। हम अपना ताम-झाम उठा कर उनके पीछे भागे। उनके लिए यशवंत क्लब का पुस्तकालय खुलवाया गया। वो जगह उन्हें ठीक लगी। आराम से बैठ गए। मैंने चरण छुए और बात शुरू की। उनकी सुपुत्री दुर्गा जसराज भी साथ ही बैठकर साक्षात्कार में शरीक हो गईं।