Ajmer Dargah case : अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की चर्चित दरगाह शिव मंदिर के ऊपर बने होने के दावे से संबंधित विवाद बृहस्पतिवार को उस वक्त और गहरा गया जब इसे लेकर नेताओं एवं अन्य के बयान सामने आए। कुछ नेताओं ने इस विवाद को 'चिंताजनक' बताया तो किसी ने 'दुखदायी' करार दिया।
दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक वाद अजमेर की स्थानीय अदालत में दायर किया गया था। अदालत ने बुधवार को वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया और अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब उत्तर प्रदेश की एक स्थानीय अदालत ने संभल स्थित जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि इस जगह पर पहले मंदिर था। इसके बाद हुई हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई। अजमेर के इस ताजा विवाद के कारण कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि यह शहर भी 'सांप्रदायिक तनाव' की ओर बढ़ सकता है।
दरगाह कमेटी के पदाधिकारियों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जबकि अजमेर दरगाह के खादिमों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि उक्त याचिका समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने के लिए जानबूझकर की जा रही कोशिश है।
उन्होंने दरगाह को सांप्रदायिक सौहार्द व धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन आती है और एएसआई का इस जगह से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा, समाज ने बाबरी मस्जिद मामले में फैसले को स्वीकार कर लिया और हमें विश्वास था कि उसके बाद कुछ नहीं होगा, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी चीजें बार-बार हो रही हैं। उत्तर प्रदेश के संभल का उदाहरण हमारे सामने है। इसे रोका जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अंजुमन को मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए। दरगाह परिसर में मंदिर होने का दावा करते हुए वहां पूजा की अनुमति संबंधी याचिका सितंबर में दायर की गई थी और इसकी अगली सुनवाई 20 दिसंबर को प्रस्तावित है।
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से स्थानीय अदालत में याचिका दाखिल की गई है, जिन्होंने अपने दावे के समर्थन में हर बिलास शारदा की एक किताब का हवाला देते हुए दावा किया है कि जहां दरगाह बनाई गई वहां एक शिव मंदिर था। उन्होंने दावा किया, इसके अलावा कई अन्य तथ्य हैं जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां एक शिव मंदिर था।
याचिका में गुप्ता ने दरगाह को शिव मंदिर घोषित करने, दरगाह संचालन से जुड़े अधिनियम को रद्द करने, पूजा करने का अधिकार देने और एएसआई को उस स्थान का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने दो साल तक शोध किया है और उनके निष्कर्ष हैं कि वहां एक शिव मंदिर था जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था और फिर एक दरगाह बनाई गई थी।
इस मुद्दे को लेकर बहस छिड़ने व अनेक वर्गों द्वारा चिंताएं जताए जाने के बीच केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने आश्चर्य जताया और कहा, इसमें दिक्कत क्या है? उन्होंने कहा, अदालत ने आदेश दिया है सर्वे का, हमारा मानना है कि अगर किसी हिंदू ने याचिका दायर की है और अदालत ने यदि सर्वे का आदेश दिया है तो इसमें दिक्कत क्या होनी चाहिए? यह सत्य है कि जब मुगल आक्रांता आए थे, तो उन्होंने हमारे मंदिरों को तोड़ा था।
उन्होंने कहा, अब आप कहेंगे कि कितने मस्जिदों के बारे में आप दावा करेंगे, तो मैं कहूंगा कि आज तक कांग्रेस की सरकार केवल तुष्टीकरण करती रही। आक्रांताओं द्वारा मंदिरों पर मस्जिद बनाने का जो मुहिम चला था उसे 1947 में ही समाप्त कर दिया गया होता, तो आज हमें अदालत में अर्जी देने की जरूरत नहीं पड़ती।
यूनाइटेड मुस्लिम फोरम राजस्थान (यूएमएफआर) के अध्यक्ष मुजफ्फर भारती ने कहा कि यह याचिका उपासना स्थल अधिनियम 1991 का सरासर उल्लंघन है। भारती ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से सालाना उर्स के दौरान दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर भेजी जाती है और इस परंपरा की शुरुआत जवाहर लाल नेहरू ने की थी।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बयान से सहमति जताई। उन्होंने कहा, दरगाह शरीफ 800 साल से वहां (अजमेर में) है। देश के हर प्रधानमंत्री उर्स के दौरान दरगाह के लिए चादर भेजते हैं। यह सब कहां रुकेगा? पूजा स्थल अधिनियम 1991 का क्या होगा? यह देश को अस्थिर करने के लिए किया जा रहा है। मैं बार-बार कह रहा हूं कि ये चीजें देश के पक्ष में नहीं हैं। ये लोग सीधे या परोक्ष रूप से भाजपा, आरएसएस से जुड़े हुए हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने एक बयान में कहा कि याचिका पर विचार करने का दीवानी अदालत का फैसला अनुचित है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं है। पार्टी ने कहा, यह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के विरुद्ध है, जो यह आदेश देता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले मौजूद किसी धार्मिक स्थल पर कोई कानूनी विवाद नहीं उठाया जा सकता है।
पार्टी के अनुसार, इस अधिनियम के उल्लंघन के कारण संभल में मस्जिद के सर्वेक्षण के संबंध में पहले ही त्रुटिपूर्ण निर्णय किया जा चुका है। पार्टी ने उच्चतम न्यायालय से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी उक्त कानून का हवाला दिया।
मुफ्ती ने कहा, भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश की बदौलत भानुमति का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों के बारे में विवादास्पद बहस छिड़ गई है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बावजूद कि 1947 जैसी यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए, उनके फैसले ने ऐसे स्थलों के सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका है।
यहां मुफ्ती का इशारा एक तरह से तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के आदेश की ओर था जिसमें एएसआई को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह पहले से मौजूद मंदिर पर बनी थी या नहीं।
पिछले साल अगस्त में उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एएसआई सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिससे एक तरह से संभल और मथुरा जैसे विवाद की राह खुली। हालांकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एएसआई को गैर-आक्रामक पद्धति के माध्यम से सर्वेक्षण करने के लिए कहा।
अजमेर के घटनाक्रम को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन ने एक और हतप्रभ करने वाली घटना बताया। वहीं राज्यसभा के सदस्य कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट में लिखा, चिंताजनक। नया दावा : अजमेर दरगाह में शिव मंदिर। हम इस देश को कहां ले जा रहे हैं? और क्यों? राजनीतिक लाभ के लिए?
समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा, ये बातें बहुत ही दुखदायी हैं। ये सब बहुत तकलीफ की बातें हैं। कुछ लोग 2024 के (लोकसभा) चुनाव के बाद से आपे से बाहर हो गए हैं, उसमें उनको बहुमत नहीं मिला। वे लोग ये चाहते हैं कि अब किसी खास समुदाय को निशाना बनाकर हम बहुसंख्यकों को खुश कर लेंगे।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती फारस के एक सूफी संत थे, जो अजमेर में रहने लगे। इस सूफी संत के सम्मान में मुगल बादशाह हुमायूं ने दरगाह बनवाई थी। अपने शासनकाल के दौरान, मुगल बादशाह अकबर हर साल अजमेर आते थे। उन्होंने और बाद में बादशाह शाहजहां ने दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाईं। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour