जम्मू। जम्मू कश्मीर की जनता को आशा है कि भारत, पाकिस्तान के साथ की गई सिंधु जल संधि को समाप्त कर देगा। सभी पक्षों, यहां तक कि पर्यवेक्षकों का भी मानना है कि इस संधि को समाप्त करना एक 'परमाणु बम' गिराने के समान होगा। क्योंकि अगर जल संधि तोड़ दी जाती है तो भारत से बहने वाली नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है, जिसके मायने होंगे वहां पानी के लिए हाहाकार मचना।
यह सबसे बड़ा बम होगा पाकिस्तानी जनता के लिए और वह आतंकवाद को बढ़ावा देने की अपनी नीति को बदल लेगा। पुलवामा हमले के बाद यह दबाव और बढ़ा है। इस बीच, भारत ने पाकिस्तान से MFN का दर्ज तो वापस ले ही लिया है।
वर्ष 1960 के सितंबर महीने में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अयूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी। इस जलसंधि के मुताबिक, भारत को जम्मू कश्मीर में बहने वाले तीन दरियाओं- सिंध, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहीं है। अर्थात, जम्मू-कश्मीर के लोगों के शब्दों में:‘भारत ने राज्य के लोगों के भविष्य को पाकिस्तान के पास गिरवी रख दिया था।
यह कड़वी सच्चाई भी है। इन तीनों दरियाओं का पानी अधिक मात्रा में राज्य के वासी इस्तेमाल नहीं कर सकते। इससे अधिक बदनसीबी क्या होगी कि इन दरियाओं पर बनाए जाने वाले बांधों के लिए पहले पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती है। असल में जनता का ही नहीं, बल्कि अब तो नेताओं का भी मानना है कि इस जलसंधि ने जम्मू कश्मीर के लोगों को परेशानियों के सिवाय कुछ नहीं दिया है।
नतीजतन सिंधु जल संधि को समाप्त करने की मांग करने वालों में सबसे प्रमुख स्वर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला का भी है। वे पिछले कई सालों से इस मांग को दोहरा रहे हैं, यहां तक कि अपने शासनाकाल में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जम्मू कश्मीर के तीन दिवसीय दौरे के दौरान भी फारूक अब्दुल्ला इस मांग का राग अलापने से नहीं चूके थे। उनकी मांग जायज भी थी क्योंकि पाकिस्तान तथा पाक कब्जे वाले कश्मीर की ओर बहने वाले जम्मू कश्मीर के दरियाओं के पानी को पीने तथा सिंचाई के लिए एकत्र करने का अधिकार जम्मू कश्मीर को नहीं है।
युद्ध की जरूरत ही नहीं पड़ेगी : और, अब जबकि सीमाओं पर युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं तथा राज्य में पिछले 30 सालों से पाकिस्तान समर्थक आतंकवाद मौत का नंगा नाच कर रहा है, इस जलसंधि को तोड़ने की मांग बढ़ी है। यही नहीं सेना तो कहती है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी अगर भारत जलसंधि के ‘परमाणु बम’ को पाकिस्तानी जनता के ऊपर फोड़ देता है। अर्थात अगर वह जलसंधि को तोड़कर पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोक लेता है तो पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा और बदले में भारत जम्मू कश्मीर से पाकिस्तान को अपना हाथ पीछे खींचने के लिए मजबूर कर सकता है।
इस सच्चाई से पाकिस्तान भी वाकिफ है कि भारत का ऐसा कदम उसके लिए किसी परमाणु बम से कम नहीं होगा। यही कारण है कि वह इस जलसंधि के तीसरे गवाह कह लीजिए या फिर पक्ष, विश्व बैंक के सामने लगातार गुहार लगाता आ रहा है कि वह भारत को ऐसा करने से रोके।
हालांकि यही एक कड़वी सच्चाई है कि भारत के लिए ऐसा कर पाना अति कठिन होगा, विश्व समुदाय के दबाव के चलते। लेकिन आम नागरिकों का मानना है कि अगर देश को पाकिस्तानी आतंकवाद से बचाना है तो उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकना स्वीकार नहीं करना होगा। नागरिकों के मुताबिक, अगर भारत पाकिस्तानी चालों के आगे झुक जाता है तो कश्मीर में फैला आतंकवाद कभी भी समाप्त नहीं होगा।
परिणामस्वरूप इस जलसंधि को लेकर अक्सर नई दिल्ली में होने वाली वार्षिक बैठकों से पहले यह स्वर उठता रहा है कि इसे समाप्त करने की पहल कर पाकिस्तान पर ‘परमाणु बम’ का धमाका कर देना चाहिए जो अनेकों परमाणु बमों से अधिक शक्तिशाली होगा और पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।