नई दिल्ली। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) एक अनकही प्रगाढ़ता साझा करते हैं, सिर्फ लाक्षणिकता के लिए ही नहीं वास्तविक रूप में। कहा जाता है कि यह मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव-सा था कि कोई बाहरी उनसे वह जानकारी निकलवा सके, जिसका वे खुलासा नहीं करना चाहते। आज जब प्रणब दा हमारे बीच नहीं हैं, तो कई भूली बिसरी यादें ताजा होनी लाजमी हैं। खासकर, तब जब वे राष्ट्रपति भवन को अलविदा कह रहे थे।