सपा और कांग्रेस के गठबंधन को सोनिया गांधी के हस्तक्षेप, राहुल गांधी की समझदारी और प्रियंका गांधी की मेहनत का नतीजा करार दी गई। इसके पीछे पीके का बड़ा हाथ माना गया। कांग्रेस नेता प्रेस में कहते रहे, "देखिए पीके ने हमारे लिए क्या कर दिखाया है। इससे पहले लोग हमें खिलाड़ी मानना ही भूल गए थे। अब सब कांग्रेस और राहुल गांधी की ही बात कर रहे हैं।" पीके का भरोसा कांग्रेस को खुद से अधिक था आखिर बिहार चुनाव के दौरान उसने ही नितिश कुमार के लिए स्ट्रेटजी बनाई थी। पीके को 2014 में पीएम मोदी को मिली सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है।
इस चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला रहा। कांग्रेस को सिंगल डिजिट जितनी और सपा को उनका अब तक का सबसे कम मिलना एक सबक की तरह लिया जाना चाहिए। अगर बीजेपी के इंडिया शाइनिंग स्लोगन अनुभव से और यूपीए के 'भारत निर्माण' विज्ञापन से सीख ले ली जाती तो परिणाम इतने बुरे न होते। अब देखना यह है कि क्या राहुल गांधी पीके को गुजरात चुनाव के लिए भी चुनेंगे?