उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने 26 दिसंबर वीर बाल दिवस (26 December Veer Bal Diwas) मनाने की घोषणा की है। इसी दिन गुरु गोविंद सिंह जी दोनों साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह औरंगजेब की क्रूरता को सहते हुए अपना बलिदान दिया था। औरंगजेब ने उन्हें जान बख्शने के लिए धर्मांतरण का लालच भी दिया था, लेकिन उन्होंने झुकने के बजाय बलिदान देना श्रेष्ठ समझा।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि यदि भारत को भविष्य में सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाना है तो हमें अतीत के संकीर्ण विचारों से मुक्त होना होगा। साहिबजादों ने इतना बड़ा बलिदान और त्याग किया, अपना जीवन न्योछावर कर दिया, लेकिन इतनी बड़ी 'शौर्यगाथा' को भुला दिया गया। लेकिन, अब 'नया भारत' दशकों पहले हुई एक पुरानी भूल को सुधार रहा है।
मौत से नहीं घबराए वीर बालक : उन्होंने कहा कि 2 निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी क्यों की गई? वो इसलिए, क्योंकि औरंगजेब और उसके लोग गुरु गोविंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे। लेकिन, भारत के वो बेटे, वो वीर बालक, मौत से भी नहीं घबराए।
मोदी ने कहा कि उस दौर की कल्पना करिए! औरंगजेब के आतंक के खिलाफ, भारत को बदलने के उसके मंसूबों के खिलाफ, गुरु गोविंद सिंह जी पहाड़ की तरह खड़े थे। लेकिन, जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगजेब और उसकी सल्तनत की क्या दुश्मनी हो सकती थी?
इतिहास को तोड़ा-मरोड़ गया : वो दीवार में जिंदा चुने गए, लेकिन उन्होंने उन आततायी मंसूबों को हमेशा के लिए दफन कर दिया। एक ओर आतंक की पराकाष्ठा, तो दूसरी ओर अध्यात्म का शीर्ष। इस सबके बीच, एक ओर लाखों की फौज, और दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहिबजादे! ये वीर साहिबजादे किसी धमकी से डरे नहीं, किसी के सामने झुके नहीं। पीएम ने कहा कि हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया। ऐतिहासिक घटनाओं को भुला दिया गया। साहिबजादों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता।