अब तक सुदूर संवेदी तकनीकों से इनका समय पूर्व पता लगाया जाता रहा है। हालांकि यह तरीका तभी कारगर होता है जब समुद्र की गर्म सतह पर कम दबाव का क्षेत्र भलीभांति विकसित हो जाता है। डीएसटी ने कहा कि चक्रवात के आने से पर्याप्त समय पहले उसका पूर्वानुमान लगने से तैयारियां करने के लिए समय मिल सकता है और इसके व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होते हैं।
वैज्ञानिकों ने मानसून के बाद आए चार भीषण चक्रवाती तूफानों पर यह अध्ययन किया जिनमें फालिन (2013), वरदा (2013), गज (2018) और मादी (2013) हैं। मानसून के बाद आए दो तूफानों मोरा (2017) और आइला (2009) पर भी अध्ययन किया गया। पत्रिका एट्मॉस्फियरिक रिसर्च में हाल ही में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया।
अध्ययनकर्ता दल में आईआईटी, खड़गपुर से जिया अलबर्ट, बिष्णुप्रिया साहू तथा प्रसाद के भास्करन शामिल रहे। उन्होंने कहा कि मानसून के मौसम से पहले और बाद में विकसित होने वाले तूफानों के लिए कम से कम चार दिन और पहले सही पूर्वानुमान लगाने में यह नई पद्धति कारगर हो सकती है।(भाषा)