दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में गर्भपात की दवाओं की भारी कमी, सर्वेक्षण से हुआ खुलासा
सोमवार, 10 अगस्त 2020 (18:38 IST)
नई दिल्ली। देश के 6 राज्यों में दवा विक्रेताओं के सर्वेक्षण से यह खुलासा हुआ है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश में गर्भपात की दवाओं की भारी किल्लत है, जिससे इन राज्यों की गर्भवती महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेना पड़ता है।
फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज इंडिया (एफआरएचएसआई) ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश और असम के 1,500 दवा विक्रेताओं का सर्वेक्षण करके यह पता लगाया कि कितने प्रतिशत दवा विक्रेता अपने पास गर्भपात की दवा रखते हैं।
सर्वेक्षण से यह खुलासा हुआ कि पंजाब में मात्र एक प्रतिशत दवा विक्रेता गर्भपात की दवा रखते हैं। इसके अलावा हरियाणा और तमिलनाडु के दो-दो प्रतिशत, मध्यप्रदेश के 6.5 प्रतिशत और दिल्ली के 34 प्रतिशत दवा विक्रेता गर्भपात की दवा बेचते हैं। असम की स्थिति इन सबसे बेहतर है, जहां के 69.6 प्रतिशत दवा विक्रेताओं के पास गर्भपात की दवा थी।
परिवार नियोजन सेवाएं प्रदान करने वाले गैर सरकारी संगठन एफआरएचएसआई के मुताबिक कानूनी झंझट और जरूरत से दस्तावेज जमा करने की परेशानी से बचने के लिए लगभग 79 प्रतिशत दवा विक्रेताओं ने गर्भपात की दवाएं बेचनी बंद कर दी हैं। सर्वेक्षण में शामिल 54.8 प्रतिशत दवा विक्रेताओं का कहना था कि अनुसूची एच दवाइयों के मुकाबले गर्भपात की दवाएं ज्यादा नियंत्रित हैं।
यहां तक कि असम में, जहां गर्भपात की दवाओं का भंडार अधिक है, वहां के 58 प्रतिशत दवा विक्रेता भी इन दवाओं पर अनियंत्रण की बात कहते हैं। तमिलनाडु के 79 प्रतिशत, पंजाब के 74 प्रतिशत, हरियाणा के 63 प्रतिशत और मध्यप्रदेश के 40 प्रतिशत दवा विक्रेता गर्भपात की दवा न रखने के पीछे नियामक के नियंत्रक को ही मुख्य वजह बताते हैं।
सर्वेक्षण से यह भी बात सामने आई है कि तमिलनाडु में आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां नहीं मिलती हैं। सर्वेक्षण में शामिल राज्य के 90 प्रतिशत दवा विक्रेताओं का कहना था कि राज्य सरकार ने इन दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।
आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां डॉक्टर की पर्ची के बिना ही खरीदी जा सकती हैं और राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत ये दवाएं आशा कार्यकर्ताओं द्वारा रखीं और वितरित की जाती हैं। संगठन के मुताबिक, इन गोलियों पर प्रतिबंध लगाना तमिलनाडु की महिलाओं को सुरक्षित और आसान गर्भपात के अधिकार से वंचित करना है।
गर्भपात की दवाओं के बारे में नियामक अधिकारियों का मानना है कि लिंग परीक्षण के बाद इन दवाओं का इस्तेमाल करके गर्भपात कराया जा सकता है। यही गलतफहमी सर्वेक्षण में शामिल 10 प्रतिशत दवा विक्रेताओं को थी। तमिलनाडु के 36 प्रतिशत दवा विक्रेताओं को यह गलतफहमी थी।
एफआरएचएस इंडिया की चिकित्सकीय सेवा निदेशक रश्मि आर्डे के अनुसार, ऐसे अप्रत्याशित समय में जब लोगों के आने-जाने पर पाबंदी है और केवल कुछ ही मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध हैं, यह बहुत ज़रूरी है कि इन दवाइयों की बिक्री पर लागू अनावश्यक प्रतिबंध हटाकर दवा दुकानों में मेडिकल गर्भपात दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि ये दवाएं, जिन्हें भारत में महिलाएं गर्भवती होने के बाद नौ हफ़्तों के अंदर ले सकती हैं, इनका इस्तेमाल चयनात्मक गर्भपात के लिए नहीं किया जा सकता।संगठन का कहना है कि अत्यधिक जांच-पड़ताल और अति नियंत्रण के कारण गर्भपात की दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है जो एक चिंता का विषय है और इससे लाखों महिलाएं सुरक्षित गर्भपात उपाय अपना नहीं पा रही हैं।
वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन दवाओं से संबंधित परामर्श जारी किया था, जिसके अनुसार इन्हें ज़रूरी दवाइयों की मूलभूत सूची (कोर लिस्ट ऑफ़ एसेंशियल मेडिसिंस) में शामिल किया गया। संगठन की वरिष्ठ प्रबंधक देबांजना चौधरी के अनुसार मेडिकल गर्भपात ने काफ़ी हद तक आरंभिक गर्भपात देखभाल संबंधी खर्चों को कम कर दिया है जिस कारण महिलाएं इसे आसानी से अपनाती हैं।
कोविड-19 के चलते, बहुत से अस्पतालों ने सर्जिकल गर्भपात करने से पहले कोविड-19 टेस्ट कराने की मांग शुरू कर दी है जिससे सर्जिकल गर्भपात संबंधी खर्चों में और बढ़ोतरी हो सकती है। सर्जिकल गर्भपात के मुकाबले गर्भपात की दवाएं सस्ती होती हैं। इन दवाओं की अनुपलब्धता से महिलाएं सर्जिकल गर्भपात का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में गर्भपात संबंधी खर्च में बढ़ोतरी होने पर इस ओर महिलाओं की पहुंच दर में भी कमी आ सकती है।
संगठन का कहना है कि इन दवाओं द्वारा लिंग चयन कर गर्भपात कराने की गलतफ़हमी को दूर करने की ज़रूरत है। साथ ही केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन अनुमोदन/आवश्यकताओं और चिकित्सा गर्भपात अधिनियम (एमटीपी) में तालमेल लाने और एमटीपी नियमों में बदलाव लाने की आवश्यकता है जिससे एमबीबीएस डॉक्टरों को पर्ची (प्रिस्क्रिप्शन) द्वारा ये दवाएं सुझाने का अधिकार मिले।
इसके अलावा गर्भपात की दवाओं के कॉम्बी-पैक को औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम की अनुसूची में शामिल करने की ओर विचार करना चाहिए तथा मीडिया पहुंच द्वारा सुरक्षित गर्भपात संबंधी जानकारी प्रचार कार्यों में ज़्यादा पूंजी निवेश करना चाहिए और जो महिलाएं ये दवाएं लेती हैं उनके लिए टोल-फ़्री हेल्पलाइन नंबर जारी कर उन्हें मदद प्रदान करनी चाहिए।(वार्ता)