चर्चित मुद्दा: हिजाब विवाद से संवैधानिक अधिकारों के टकराव के हालात?

विकास सिंह

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022 (15:30 IST)
कर्नाटक के उडुपी एक सरकारी स्कूल से शुरु हुआ हिजाब विवाद अब हर नए दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है। कर्नाटक से शुरु हुआ पूरा विवाद देखते ही देखते महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों तक पहुंच गया है। हिजाब पर बढ़ते विवाद पर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए इसे राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाने की बात कही है। वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट सोमवार को फिर इस पूरे मामले की सुनवाई करेगा।  
 
उधर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने हिजाब विवाद को विधानसभा चुनाव से जोड़ते हुए ट्वीट किया कि भारत में जब भी चुनाव आते हैं कोई न कोई गैंग प्रगट हो जाता है। कभी टुकड़े टुकड़े गैंग, कभी मोमबत्ती गैंग, कभी गोल बिंदी गैंग, कभी अवार्ड वापसी गैंग। हिजाब विवाद भी उसी टूलकिट का हिस्सा है। सभी के तार आपस में जुड़े हुए है सब कुछ प्रायोजित है।
 
ऐसे में हिजाब पर उठे विवाद के औचित्य को समझने के साथ यह समझना जरूरी हो गया है कि क्या पूरे विवाद से संवैधानिक अधिकारों के टकराव के हालात बन रहे है।   
हिजाब विवाद के औचित्य पर सवाल?-कर्नाटक के उडुपी में एक स्कूल में लड़कियों के यूनिफॉर्म को लेकर शुरु हुए हिजाब विवाद के औचित्य पर भी सवाल उठ रहे है। सामान्यत तौर पर देश के स्कूलों में यूनिफॉर्म का नियम वर्षों से लिए इसलिए लगाया जाता है ताकि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपनी पारिवारिक हैसियत, ऊँच-नीच, जात-मजहब वग़ैरह के मतभेद भुला कर एक जैसे सीखे और स्कूल में पाई हुई तालीम को समाज में इस्तेमाल करना सीख सकें। इसके साथ स्कूलों को यूनिफॉर्म तय करने का संविधान के तहत अधिकार भी मिला हुआ है। 
 
भारत में संविधान लागू होने से पहले भी क्षशिला और नालंदा जैसे दुनिया के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में और गुरुकुलों में भी विद्यार्थी एक जैसी ही वेशभूषा में रहते थे। इससे कोई अपनी जड़ों, अपने मज़हब और विश्वासों से दूर नहीं हो जाता। उम्र बढ़ने के बाद एक बार सोचने और समझने की बुनियाद पड़ जाने के बाद कॉलेज में पहनावे और खान-पान के नियम से छूट दे दी जाती है ताकि युवा दिमाग़ अपने विचारों को आज़मा सकें और अपनी धरती, अपनी पहचान, अपनी धारणाएँ बना सकें। 
 
संवैधानिक अधिकारों के टकराव के हालात- हिजाब विवाद पर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि हिजाब के पूरे विवाद में संविधान के मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आने वाला अनुच्छेद-14 विधि के सामान संरक्षण और विधि के समक्ष समानता (equality before law and equal protection of law),अनुच्छेद 15-धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं (Non discrimination on the basis of religion) और अनुच्छेद 25 धर्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (freedom of religion) महत्वपूर्ण हो जाते है।
कर्नाटक में हिजाब पहनने की मांग करने मुस्लिम लड़कियों का कहना हैं कि हमारे मजहब में हिजाब और बुर्का मजहब का अंग है तो इसलिए हमें हिजाब और बुर्का पहनने की फ्रीडम मिलनी चाहिए जो फ्रीडम ऑफ रिलीजन के तहत अधिकार में है। संविधान में सबको एक समान रूप से जो चाहे उसको पहनने की फ्रीडम दी गई है,लेकिन इंस्टीट्यूशन (संस्थाओं) को भी फ्रीडम दी गई है कि वह अपने अनुसार रूल्स बनाए और यूनिफॉर्म तय करें। 
 
इसके साथ हिजाब के मुद्दे पर सीधे तौर पर फ्रीडम ऑफ प्रोफेशन से भी टकराव होता है। जैसे नर्सेज बुर्का पहनकर नर्स का काम नहीं कर सकती, अब जब महिलाएं सेना में भी शामिल हो रही है तब सेना में रहकर बुर्का पहनकर नहीं लड़ सकती है। ऐसे में जब मुस्लिम लड़कियां फ्रीडम ऑफ फ्रोफेशन के तहत नर्सिग, पुलिस, मिलिट्री में जा सकती है लेकिन वहां पर वह हिजाब और बुर्का पहनकर काम नहीं कर सकती है औ न हो सकता है। 
 
ऐसे में फ्रीडम ऑफ प्रोफेशन खत्म हो जाएगी और उसका फ्रीडम ऑफ रिलीजन से सीधा टकराव होगा। अगर हिजाब को लेकर फ्रीडम ऑफ रिलीजन की बात मान ली जाए तो बहुत सारे अन्य संवैधानिक अधिकारों से सीधा टकराव होगा।
 
जहां तक संविधान में दिए गए निजता के अधिकार की बात है तो हर किसी को यह फ्रीडम है कि वह कुछ भी पहने यानि सब बराबर है और किसी पर कोई पाबंदी नहीं हो सकती लेकिन यह भी नहीं हो सकता है कि कोई निर्वस्त्र घूमें क्यों उससे दूसरे अन्य की स्वतंतत्रा प्रभावित होती है। संविधान में बहुत सारी स्वतंत्रता दी गई है लेकिन उनमें एक दूसरे में टकराव नहीं होना चाहिए। आपकी फ्रीडम दूसरी की फ्रीडम से और दूसरों की फ्रीडम आपकी फ्रीडम से टकरानी नहीं चाहिए। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि अगर आपको सड़क पर चलने की स्वतंत्रता है तो दूसरो भी उतनी ही स्वतंत्रता है। ऐसे में यह देखना हो कि टक्कर न हो। 
 
संविधान में स्कूलों और कॉलेजों को अपनी यूनिफॉर्म निर्धारित करने का अधिकार है जिन्हें वह शर्त मंजूर नहीं है तो वहां पर नहीं जाए। एक तरफ एक व्यक्ति की फ्रीडम है कि वह जो चाहे वह पहने तो दूसरी तरह कॉलेज की फ्रीडम है कि वह ड्रेस कोड तय कर सकें। अगर हिजाब को सिक्खों की पगड़ी पहनने के अधिकार से जोड़ा जाता है तो इसमें हिजाब को सिर्फ सिर में बांधने की छूट दी जा सकती है न कि पूरे शरीर को ढ़ंकने की।

अगर स्वतंत्रता के एक अधिकार का स्वतंत्रता के दूसरे अधिकार से टकराव होगा तो उस पर निश्चित तौर पर सोचना पढ़ेगा कि कहां तक अनुमति दी जा सकती है, बहरहाल पूरा मामला कोर्ट में है और अब कोर्ट को इस पर निर्णय लेना होगा।

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