महापात्र ने कहा, इस वर्ष अल नीनो फीका पड़ रहा है। जून की शुरुआत तक यह तटस्थ स्थिति बन सकती है। उन्होंने यह बात मध्य प्रशांत महासागर के गर्म होने का जिक्र करते हुए कही, जिसे दक्षिण पश्चिम मानसून को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक माना जाता है।
ला नीना भारतीय मानसून के लिए अच्छा : उन्होंने कहा कि जुलाई-सितंबर मानसून मौसम की दूसरी छमाही में ला नीना की स्थिति देखी जा सकती है, जो मध्य प्रशांत महासागर के ठंडा होने को संदर्भित करती है। महापात्र ने कहा, ला नीना भारतीय मानसून के लिए अच्छा है। और तटस्थ स्थितियां अच्छी हैं। हालांकि अल नीनो अच्छा नहीं है। 60 प्रतिशत मामलों में अल नीनो का भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन पिछले वर्ष इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।
दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है भारत की 70 प्रतिशत वार्षिक वर्षा : उन्होंने कहा, इस साल भी बर्फ का आवरण कम है। यह एक और सकारात्मक कारक है। इसलिए बड़े पैमाने पर प्रक्रियाएं मानसून के लिए अनुकूल हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारत की लगभग 70 प्रतिशत वार्षिक वर्षा होती है, जो कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। कृषि क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 14 प्रतिशत है और इसकी 1.4 अरब आबादी में से आधे से अधिक को रोजगार देता है।
भारत में 2023 के मानसूनी मौसम में 868.6 मिमी की दीर्घावधि के औसत की तुलना में 820 मिमी की औसत से नीचे संचई वर्षा हुई, जिसके लिए मजबूत अल नीनो को जिम्मेदार ठहराया गया था। आईएमडी इस महीने के अंत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान जारी करेगा। आईएमडी मानसून सीजन की बारिश का पूर्वानुमान जताने के लिए तीन बड़े पैमाने की जलवायु घटनाओं पर विचार करता है।
पहला है अल नीनो, दूसरा है हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी) जो भूमध्यरेखीय हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी किनारों के अलग-अलग तापमान के कारण होता है और तीसरा, उत्तरी हिमालय और यूरेशियन भूभाग पर बर्फ का आवरण है, जो भूभाग के अलग-अलग गर्माहट के माध्यम से भारतीय मानसून पर भी प्रभाव डालता है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour