याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ऐसे अंतिम वर्ष के कई छात्र हैं, जो या तो खुद कोरोना संक्रमण के शिकार हैं या उनके परिवार के सदस्य इस महामारी की चपेट में हैं। ऐसे छात्रों को इस वर्ष 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि आमतौर पर 31 जुलाई तक छात्रों को अंक प्रमाण पत्र/ डिग्री प्रदान की जाती है जबकि वर्तमान मामले में परीक्षाएं 30 सितंबर तक समाप्त होंगी। याचिकाकर्ता की दलील है कि जब विभिन्न शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं रद्द करके आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर परिणाम घोषित किए जा सकते हैं तो अंतिम वर्ष के छात्रों का क्यों नहीं? (भाषा)