Cheque bounce case : प्रमुख शहरों की जिला अदालतों में बहुत अधिक संख्या में चेक बाउंस के मामलों के लंबित रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन्हें कम करने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनमें स्वैच्छिक समझौता और आरोपियों की परिवीक्षा (प्रोबेशन) पर रिहाई शामिल है। खंडपीठ ने कहा कि यह न्यायालय इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेता है कि विभिन्न निर्णयों में इस अदालत द्वारा बार-बार दिए गए निर्देशों के बावजूद भारत के प्रमुख महानगरों के जिला न्यायालयों में एनआई अधिनियम के तहत चेक बाउंस के लंबित मामलों की संख्या अब भी बहुत अधिक बनी हुई है।
न्यायमूर्ति मनमोहन और एनवी अंजारिया की पीठ ने चेक बाउंस मामलों की सुनवाई करते हुए, जहां मुंबई उच्च न्यायालय ने ज़िला अदालतों के समान निष्कर्ष को पलटते हुए आरोपियों को रिहा कर दिया था, परक्राम्य लिखत (एनआई) अधिनियम के तहत अपराधों के शमन/समझौते से संबंधित 15 साल पुराने दिशा-निर्देशों में बदलाव किया।
खंडपीठ ने कहा कि यह न्यायालय इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेता है कि विभिन्न निर्णयों में इस अदालत द्वारा बार-बार दिए गए निर्देशों के बावजूद भारत के प्रमुख महानगरों के जिला न्यायालयों में एनआई अधिनियम के तहत चेक बाउंस के लंबित मामलों की संख्या अब भी बहुत अधिक बनी हुई है।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि एक सितंबर तक दिल्ली की जिला अदालतों में एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत लंबित मामले 6,50,283 थे, मुंबई जिला अदालतों में 1,17,190 और कलकत्ता जिला अदालतों में 2,65,985 थे।
शीर्ष अदालत ने कहा, ये लंबित मामले न्यायिक प्रणाली पर अभूतपूर्व दबाव डाल रहे हैं, क्योंकि कुछ राज्यों में एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत मामले अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों का लगभग 50 प्रतिशत है (दिल्ली में एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत मामले निचली अदालत में लंबित कुल मामलों का 49.45 प्रतिशत है)।
शीर्ष अदालत के मौजूदा दिशानिर्देशों में फेरबदल करते हुए खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के लंबित मामलों की भारी संख्या और पिछले कुछ वर्षों में ब्याज दरों में गिरावट के कारण ऐसा करना बहुत जरूरी है। संशोधित दिशानिर्देशों के तहत यदि आरोपी अपने साक्ष्य (अर्थात बचाव पक्ष के साक्ष्य) दर्ज होने से पहले चेक की राशि का भुगतान कर देता है, तो निचली अदालत अभियुक्त पर कोई जुर्माना या लागत लगाए बिना अपराध को शमन/निपटान करने की अनुमति दे सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, यदि आरोपी अपनी गवाही दर्ज होने के बाद लेकिन निचली अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने से पहले चेक राशि का भुगतान कर देता है, तो मजिस्ट्रेट विधिक सेवा प्राधिकरण या न्यायालय द्वारा उचित समझे जाने वाले किसी अन्य प्राधिकारी को चेक राशि का अतिरिक्त पांच प्रतिशत भुगतान करने पर अपराध का शमन कर सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इसी प्रकार यदि चेक राशि का भुगतान सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण या अपील के लिए किया जाता है, तो ऐसी अदालत इस शर्त पर अपराध का शमन कर सकती है कि अभियुक्त चेक राशि का 7.5 प्रतिशत खर्च के रूप में अदा करे। (इनपुट एजेंसी)
Edited By : Chetan Gour