पीठ ने कहा कि हमारे सामने परेशानी है। आपातकाल कुछ ऐसा है, जो नहीं होना चाहिए था। वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने वयोवृद्ध वीरा सरीन की ओर से बहस करते हुए कहा कि आपातकाल 'छल' था और यह संविधान पर 'सबसे बड़ा हमला' था, क्योंकि महीनों तक मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। देश में 25 जून, 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 1977 में खत्म हुआ था।
सरीन ने याचिका में कहा है कि उनके पति का उस समय दिल्ली में स्वर्ण कलाकृतियों का कारोबार था लेकिन उन्हें तत्कालीन सरकारी प्राधिकारियों की मनमर्जी से अकारण ही जेल में डाले जाने के भय के कारण देश छोड़ना पड़ा था। याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता के पति की बाद में मृत्यु हो गई और उनके खिलाफ आपातकाल के दौरान शुरू की गई कानूनी कार्यवाही का उन्हें सामना करना पड़ा था।
याचिका के अनुसार आपातकाल की वेदना और उस दौरान हुई बर्बादी का दंश उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है।याचिकाकर्ता के अनुसार उनके परिवार को अपने अधिकारों और संपत्ति पर अधिकार के लिए 35 साल दर-दर भटकना पड़ा। याचिका के अनुसार उस दौर में याचिकाकर्ता से उनके रिश्तेदारों और मित्रों ने भी मुंह मोड़ लिया, क्योंकि उनके पति के खिलाफ गैरकानूनी कार्यवाही शुरू की गई थी और अब वे अपने जीवनकाल में इस मानसिक अवसाद पर विराम लगाना चाहती हैं, जो अभी तक उनके दिमाग को झकझोर रहा है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभी तक उनके आभूषण, कलाकृतियां, पेंटिंग, मूर्तियां और दूसरी कीमती चल संत्तियां उनके परिवार को नहीं सौंपी गई हैं और इसके लिए वे संबंधित प्राधिकारियों से मुआवजे की हकदार हैं। याचिका में दिसंबर 2014 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश का भी जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई किसी भी अधिकार क्षेत्र से परे थी।