नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति के अध्यक्ष विनोद राय ने कहा है कि बाधा पहुंचाने वाले तत्व लोढा सिफारिशों को लागू करने में अड़ंगा लगा रहे हैं और अब सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले का चाबुक चलना ही पड़ेगा। विनोद राय ने कहा कि जहां तक मेरा संबंध है, वार्ता के लिए अब कोई जगह नहीं रह गई है और इन सिफारिशों को लागू करने के लिए सर्वोच्च अदालत को कदम उठाना ही होगा।
प्रशासकों की समिति का धैर्य अब जवाब दे रहा है, क्योंकि उसके गठन के छह माह बीत चुके हैं लेकिन सुधार का कोई सूरते हाल नजर नहीं आ रहा है। समिति ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और उसकी सदस्य इकाइयों को मनाने की भरपूर कोशिश की है कि वह लोढा समिति की सिफारिशों के अनुसार नए संविधान को अपना ले लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है।
राय ने कहा कि मैं हताश नहीं हूं। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि अदालत के फैसले का पालन होना चाहिए। विनोद राय ने कहा कि मैं केवल 30 जनवरी के बाद की बात ही करूंगा। हम उससे पहले के समय में जाना नहीं चाहते। सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी तक सुधारों को लागू करने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। अब चाहे कारण जो भी रहे हों। उसके बाद हमें नियुक्त किया गया। हमें जनादेश था कि सुप्रीम कोर्ट के 18 जुलाई के आदेश को लागू करना है। इसे क्रिकेट बोर्ड की विशेष आम बैठक में प्रस्ताव पारित कर ही लागू किया जा सकता था।
उन्होंने कहा कि चूंकि फैसला उन पर थोपा गया था इसलिए वे सहमत नहीं थे। मैंने बोर्ड सदस्यों के बीच एक राय बनाने की कोशिश की। मैंने उनसे कहा कि वे अपनी आपत्तियों को कम से कम करने की कोशिश करें और फिर कोर्ट से उन पर ध्यान देने का आग्रह करें।
राय ने कहा कि "मैंने उनसे कहा कि वे अदालत की अवहेलना न करें और फैसले का सम्मान करें। यदि आपकी वाकई कोई परेशानी है तो उसे अदालत के संज्ञान में लाएं। मैंने उनके साथ छह और 25 जून की एसजीएम से पहले बैठक की और उन्हें बताया कि यदि वे संविधान को लागू कर लेते हैं तो उन्हें फिर अदालत के सामने अपनी व्यवहारिक परेशानियों के बताने में आसानी होगी।
समिति के अध्यक्ष ने कहा कि लेकिन ऐसे चंद लोगों की हठधर्मिता के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो पाया जिनके अपने स्वार्थ हैं। चूंकि उन्होंने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को 26 जून की एसजीएम में नकार दिया तो हमारे पास स्थिति रिपोर्ट के जरिये अदालत के सामने सब कुछ रखने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया।
विनोद राय ने कहा कि मैं केवल 30 जनवरी के बाद की बात ही करूंगा। हम उससे पहले के समय में जाना नहीं चाहते। सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी तक सुधारों को लागू करने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। अब चाहे कारण जो भी रहे हों। उसके बाद हमें नियुक्त किया गया। हमें जनादेश था कि सुप्रीम कोर्ट के 18 जुलाई के आदेश को लागू करना है। इसे क्रिकेट बोर्ड की विशेष आम बैठक में प्रस्ताव पारित कर ही लागू किया जा सकता था।
उन्होंने कहा कि चूंकि फैसला उन पर थोपा गया था इसलिए वे सहमत नहीं थे। मैंने बोर्ड सदस्यों के बीच एक राय बनाने की कोशिश की। मैंने उनसे कहा कि वे अपनी आपत्तियों को कम से कम करने की कोशिश करें और फिर कोर्ट से उन पर ध्यान देने का आग्रह करें।
राय ने कहा कि मैंने उनसे कहा कि वे अदालत की अवहेलना न करें और फैसले का सम्मान करें। यदि आपकी वाकई कोई परेशानी है तो उसे अदालत के संज्ञान में लाएं। मैंने उनके साथ छह और 25 जून की एसजीएम से पहले बैठक की और उन्हें बताया कि यदि वे संविधान को लागू कर लेते हैं तो उन्हें फिर अदालत के सामने अपनी व्यवहारिक परेशानियों के बताने में आसानी होगी।
समिति के अध्यक्ष ने कहा कि लेकिन ऐसे चंद लोगों की हठधर्मिता के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो पाया जिनके अपने स्वार्थ हैं। चूंकि उन्होंने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को 26 जून की एसजीएम में नकार दिया तो हमारे पास स्थिति रिपोर्ट के जरिए अदालत के सामने सब कुछ रखने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया। (वार्ता)