Supreme Court on POCSO Act: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सुझाव दिया कि संसद को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम में संशोधन को लेकर गंभीरता से विचार करना चाहिए, ताकि बाल पॉर्नोग्राफी शब्द के स्थान पर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री शब्द का इस्तेमाल किया जा सके, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे अपराधों की वास्तविकता को और अधिक सटीक रूप से दर्शाया जा सके।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि इस बीच केंद्र सरकार पॉक्सो अधिनियम में सुझाए गए संशोधन के लिए अध्यादेश पर विचार कर सकती है। पीठ ने कहा कि हम अदालतों को यह ध्यान दिलाना चाहते हैं कि 'बाल पॉर्नोग्राफी' शब्द का इस्तेमाल किसी भी न्यायिक आदेश या फैसले में नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके स्थान पर 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' (CSEAM) शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ALSO READ: चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, केन्द्र सरकार को भी दी सलाह
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला : सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया है कि बाल पॉर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम के तहत अपराध है। पीठ ने अपने 200 पन्नों के फैसले में सुझाव दिया कि व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना संभावित अपराधियों को रोकने में मदद कर सकता है। पीठ के अनुसार, इन शिक्षा कार्यक्रमों में बाल पोर्नोग्राफी के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल होनी चाहिए। ALSO READ: एनडीपीएस के तहत दर्ज मामले में अग्रिम जमानत देना बहुत गंभीर मुद्दा : सुप्रीम कोर्ट
फैसले में कहा गया है कि इन कार्यक्रमों के जरिए आम गलतफहमियों को दूर किया जाना चाहिए और युवाओं को सहमति एवं शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ प्रदान की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि प्रारंभिक पहचान, हस्तक्षेप और वैसे स्कूल-आधारित कार्यक्रमों को लागू करने में स्कूल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो छात्रों को स्वस्थ संबंधों, सहमति और उचित व्यवहार के बारे में शिक्षित करते हैं और समस्याग्रस्त यौन व्यवहार (पीएसबी) को रोकने में मदद कर सकते हैं।
विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव : पीठ ने कहा कि उपर्युक्त सुझावों को सार्थक प्रभाव देने और आवश्यक तौर-तरीकों पर काम करने के लिए, भारत संघ एक विशेषज्ञ समिति गठित करने पर विचार कर सकता है, जिसका काम स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिए एक व्यापक कार्यक्रम या तंत्र तैयार करने के साथ ही देश भर में बच्चों के बीच कम उम्र से ही पॉक्सो के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी हो, ताकि बाल संरक्षण, शिक्षा और यौन कल्याण के लिए एक मजबूत और सुविचारित दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके। ALSO READ: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बुल्डोजर एक्शन पर लगाई रोक
पीठ ने पीड़ितों को सहायता सेवाएं प्रदान करने और अपराधियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इन सेवाओं में अंतर्निहित मुद्दों के समाधान और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप और शैक्षिक सहायता शामिल होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि संसद को ऐसे अपराधों की वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से दर्शाने के उद्देश्य से 'बाल पॉर्नोग्राफी' शब्द को 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' (सीएसईएएम) से बदलने के उद्देश्य से पॉक्सो अधिनियम में संशोधन लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जो लोग पहले से ही बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री देखने या वितरित करने के क्रियाकलापों में शामिल हैं, उनके लिए सीबीटी (संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी) इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा देने वाली संज्ञानात्मक विकृतियों को दूर करने में कारगर साबित हुई है। पीठ ने कहा कि थेरेपी कार्यक्रमों को सहानुभूति विकसित करने, पीड़ितों को होने वाले नुकसान को समझने और समस्याग्रस्त विचार पैटर्न को बदलने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जागरूकता पर जोर : पीठ ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से बाल यौन शोषण सामग्री की वास्तविकताओं और इसके परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से ऐसी घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है और इन अभियानों का उद्देश्य यह होना चाहिए कि ऐसी घटनाओं की जानकारी उपलब्ध कराने से बचने की प्रवृत्ति समाप्त हो और सामुदायिक सतर्कता को प्रोत्साहित किया जा सके।
पीठ ने सुझाव दिया कि शिक्षकों, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को पीएसबी के संकेतों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इसने कहा कि जागरूकता कार्यक्रम इन पेशेवरों को प्रारंभिक चेतावनी संकेतों को पहचानने तथा उचित तरीके से उसकी जवाबी प्रतिक्रिया देने के तौर-तरीकों को समझने में मदद कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पॉर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना पॉक्सो अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है। मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। (एजेंसी/वेबदुनिया)