राजस्थान समेत देश के दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में मवेशी खासकर गायें लंपी वायरस (Lampi Virus) का ज्यादा शिकार हो रही हैं। राजस्थान में इस बीमारी का सबसे ज्यादा विकराल रूप देखने को मिला है, जहां करीब 70 हजार पशुओं की मौत हो चुकी है। मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी इस बीमारी ने दस्तक दे दी है। इस रोग के चलते दूध उत्पादन पर भी असर पड़ा है। हालांकि राज्य सरकारों ने टीकाकरण के साथ ही पशु चिकित्सालय में इलाज की व्यवस्था की है, लेकिन पशुपालकों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।
क्या हैं इस रोग के लक्षण :
संक्रमित पशु को तेज बुखार हो जाता है।
पशु की त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं।
मवेशी की चमड़ी पर गांठें उभर आती हैं। इनका आकार 2 से 5 सेंटीमीटर का हो सकता है।
गांठों में खुजली एवं मवाद पड़ जाता है।
लसिका ग्रंथियों में सूजन आना, अत्यधिक लार आना और आंख आना आदि भी वायरस के लक्षण हैं।
इस वायरस से पशुओं का गर्भपात भी हो जाता है।
वायरस जानवर की लार, नाक के स्राव और दूध में भी पाया जा सकता है।
यह वायरस महीनों तक बना रहता है।
कैसे फैलता है :
यह वायरस संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से फैलता है।
कीट-पतंगे (मच्छर, मक्खी, पिस्सू आदि) रोगवाहक का काम करते हैं।
यह वायरस एशिया और अफ्रीका में पाया जाता है।
बचाव के उपाय :
स्वस्थ पशुओं को संक्रमित पशुओं से दूर रखें।
पशुओं के पास से मच्छर, मक्खी, कीट-पतंगों आदि को नष्ट करवाएं।
पशुओं के बाड़े की साफ-सफाई रखें।
संक्रमित क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों में पशुओं के ट्रांसपोर्टेशन को रोकें।
संक्रमित पशुओं को तत्काल निकटतम पशु चिकित्सा केन्द्र ले जाकर उनका उपचार कराएं।
स्वस्थ पशुओं का वैक्सीनेशन नहीं करवाया है तो निशुल्क वैक्सीन लगवाएं।
मिथेलिन ब्लू नामक दवाई भी इसके उपचार के लिए उपलब्ध है, जिसे डॉक्टर की सलाह पर पानी में मिलाकर दिया जा सकता है।
होम्योपैथी की दवा Rananculus Bubo 200 भी लंपी के उपचार में काम में ली जा रही है। इसकी 10 बूंदे दिन में 3 बार संक्रमित पशुओं को दी जा सकती हैं।