सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि लोगों की निजता के अधिकार को परिभाषित करने से लाभ से अधिक हानि हो सकती है। अदालत में इस आशय की दलीलें पेश की गई थीं कि निजता को सर्वोपरि मानना क्यों गलत होगा। कोर्ट ने कहा कि ‘राइट टू प्राइवेसी' को एक मूलभूत अधिकार मानने से पहले उसे सही तरह से परिभाषित करना जरूरी होगा और निजता के सभी तत्वों को बिल्कुल ठीक तरह से परिभाषित करना लगभग असंभव है।
क्यों खास है यह फैसला : खड़ग सिंह मामले में शीर्ष अदालत की छह सदस्यीय पीठ ने 1954 में तथा एमपी शर्मा मामले में आठ-सदस्यीय पीठ ने 1962 में व्यवस्था दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है। अब पांच-सदस्यीय संविधान पीठ आधार मामले की सुनवाई निजता के मौलिक अधिकार के पहलू से करेगी।
मौलिक अधिकारों का निलंबन : अनुच्छेद 352 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो तो अनुच्छेद 358, 359 राष्ट्रपति को यह अधिकार देते है कि वह मौलिक अधिकारों का निलंबन कर दें, परंतु अनुच्छेद 20 और 21 में दिए अधिकार किसी भी दशा में वापस नहीं लिए जा सकते।