अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपने फैसलों और बयानों से पलटने की आखिरी क्या है वजह?

विकास सिंह

शुक्रवार, 20 जून 2025 (12:58 IST)
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अकसर अपने बयानों और आदेशों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ ट्रंप अपने बयानों और फैसलों को लेकर जबरदस्त कन्फूयजन में भी दिखाई देते है। वह पहले बयान-आदेश जारी करते हैं लेकिन कुछ देर बाद ही वह अपनी बात से मुकर जाते है। डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में भी कई बार ऐसा कर चुके और अब दूसरे कार्यकाल में भी वे ऐसा ही करते दिखाई दे रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों और उनकी हरकतों के चलते दुनिया उन्हें अविश्वसनीय, अप्रत्याशित और कुछ भी फैसला ले लेने वाले एक ऐसे राष्ट्राध्यक्ष के रूप में समझने लगी है जिसके चलते न तो विश्व सुरक्षित है, और न ही अमेरिका।

ताजा मामला ईरान-इजरायल के बीच छिड़ी जंग में अमेरिका के रुख को लेकर है। ईरान पर हमले को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जबरदस्त कन्फूयज है। पहले ईरान पर हमले की सीधी चेतावनी देने वाले डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर मुकर गए है। ईरान और इजरायल के बीच जारी भीषण युद्ध के बीच गुरुवार को व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले दो हफ्तों में भीतर यह फैसला करेंगे कि अमेरिका को ईरान पर सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए या नहीं। जबकि 24 घंटे पहले ही ट्रंप ईरान पर हमले की तैयारी कर चुके थे।

ऐसा नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति पहली बार अपने फैसले या बयान से पलटे है। इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने के दावे से राष्ट्रपति ट्रंप कई बार पलट चुके है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने जब पाकिस्तान के खिलाफ ऑपेरशन सिंदूर के जरिए सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था तब अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया था कि अमेरिकी मध्यस्थता में रात भर चली बातचीत में संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी हलांकि इसके एक दिन बाद वह अपने बयान से पलट गए थे और कतर में कहा था कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान में संघर्ष विराम के लिए कोई मध्यस्थता नहीं की है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बार-बार अपने बयानों और रूख से पलटने के कारणों को लेकर मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप के बयानों में अक्सर परस्पर विरोधाभास देखा गया है, एक ही विषय पर वह कभी कुछ और फिर उसके विपरीत कहते दिखाई देते है। ट्रंप का यह व्यवहार नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी ट्रेट्स यानि स्वयं को श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति, आलोचना को अस्वीकार करना और स्थिति अनुसार अपने बयान बदलना ताकि वह श्रेष्ठ या जीतने वाले दिखें को दिखाता है।

ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप केवल विदेश नीति के मोर्चे पर कंन्फूयज दिखाई देते है, वह अपनी सरकार के नीतिगत निर्णयों में भी कन्फूयज रहते है। 2025 में अमेरिका की दूसरी बार कमान संभालने वाले ट्रंप ने नई टैरिफ पॉलिसी लागू की। उन्होंने कहा कि सभी देशों पर टैरिफ पॉलिसी के तहत आयात शुल्क लगाया जाएगा। अप्रैल 2025 में टैरिफ पॉलिसी लागू करते हुए उन्होंने घोषणा की कि कंप्यूटर, स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट पर टैरिफ से 90 दिन की छूट मिलेगी, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी इस घोषणा से यूटर्न ले लिया और कहा कि कोई भी देश टैरिफ से नहीं बचेगा। वहीं टैरिफ को लेकर चीन के प्रति उनका रूख सामान्य नहीं रहा।
 

राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ नीतियों के बारे में कहा गया है कि इससे अमेरिका तो बर्बाद होगा इससे दुनिया की लंका लग जाएगी। ट्रंप के व्यवहार पर मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी कहते है कि राष्ट्रपति ट्रंप के अचानक विदेश नीति के निर्णय या लंबे समय तक चली नीतियों को एक ट्वीट करके पलटना साइकोपैथोलॉजिकल इम्पल्सिविटी या हाइपर एग्जीक्युटिव कॉन्फिडेंस को दर्शाता है, मतलब स्वयं की निर्णय क्षमता पर अंधा विश्वास।

शायद ही यहीं कारण है कि ट्रंप के करीबी भी अब उनका साथ छोड़ रहे है। ट्रंप को दूसरी बार अमेरिका की सत्ता दिलाने वाले एलन मस्क भी अब उनसे दूर हो गए है और वह लगातार ट्रंप के फैसलों पर सवाल उठा रहे है। हाल में आई एलन मस्क ने एक्स पर लिखा किअगर यह जारी रहा, तो अमेरिका वास्तव में दिवालिया हो जाएगा और सभी कर राजस्व राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज का भुगतान करने में चला जाएगा और किसी और चीज़ के लिए कुछ भी नहीं बचेगा।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में भी कई बार अपने फैसलों से पलट गए थे। इनमें अमेरिका में मुस्लिम की एंट्री पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर यूटर्न, पेरिस जलवायु समझौते पर बार-बार अपना रुख बदलना आदि शामिल थे। मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल और चुनाव के दौरान भी में भी कई बार ऐसे फैसले और बयान दिए हैं जिनसे समाज में ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। दरअसल यह मनोवैज्ञानिक पोलराइजेशन रणनीति को दर्शाता है यानि वह  “हम बनाम वे” का निर्माण कर सत्ता बनाए रखना चाहे है और कई बार वे स्वयं को उद्धारकर्ता बताने में भी आतुर लगते हैं।

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