उत्तराखंड का ऐतिहासिक और प्राचीन शहर जोशीमठ अब जमीन में धंसने लगा है। इसरो की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 27 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच यह ऐतिहासिक शहर 5.4 सेंटीमीटर नीचे धंस चुका है। तेजी से धंसती धरती की वजह से सड़क से लेकर घरों तक गहरी दरारों की चपेट में आ गए हैं। इसरो की नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की सैटेलाइट तस्वीरें में बताया गया है कि 12 दिनों में आर्मी हेलीपैड और नरसिंह मंदिर सहित सेंट्रल जोशीमठ में सबसिडेंस जोन यानी भू-धंसाव क्षेत्र है।
जोशीमठ का कसूरवार कौन?-जोशीमठ के सिर्फ घर ही नहीं सड़कें भी धंस रही हैं। जोशीमठ शहर के धंसने की रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही है। आज अगर जोशीमठ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है तो इसका दोषी कौन है यह सवाल भी बड़ा है। जोशीमठ में इस तरह की आंशका कई दशक पहले ही व्यक्त की जा चुकी थी।
'वेबदुनिया' से बातचीत में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि जोशीमठ में प्रकृति लगातार चेतावनी दे रही थी लेकिन यह हम थे कि इंतजार कर रहे थे कोई बड़ा डिजास्टर है। हरीश रावत साफ कहते हैं कि जोशीमठ में आज की जो स्थिति वह कुछ तो क्लेटिव फ्लेयिर है, किसी न किसी समय थोड़ी गलतियां सभी से हुई है। पिछले 6-7 सालों से भाजपा सरकार कोई कदम नहीं उठाए है बल्कि हमने जो कदम उठाए उसको भी पलट दिया गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत वेबदुनिया से बातचीत मे कहते हैं कि 2014 में मुख्यमंत्री रहते हुए जब मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट मेरे संज्ञान म आई है तब उस रिपोर्ट के आधार पर जोशीमठ के लिए चार अहम निर्देश जारी किए। जिसमें मैंने धोलीगंगा और अलखनंदा के संगम पर कोस्टर बनाने का फैसला किया जो शुरु भी हुआ लेकिन बाद में बंद हो गया। वहीं दूसरे फैसलों में हमने वॉटर डैनेज सिस्टम को पुख्ता करने के साथ प्लास्टिक के वेस्ट डिस्पोजल को निस्तारण और लाइटर मटेरियल का उपयोग किया जाए। लेकिन इनको पूरा नहीं किया जा सके।
पहले की रिपोर्ट को दरकिनार करके जोशीमठ में जिस तरह से विकास कार्य किए गए उसको जोशीमठ में आई तबाही के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है। जोशीमठ की आज की स्थिति के लिए एनटीपीसी के प्रोजेक्ट के साथ आल वेदर रोड और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक बन रहे 125 किलोमीटर लंबे रेल प्रोजेक्ट को माना जा रहा है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सत्ती 'वेबदुनिया' से बातचीत में कहते हैं कि जोशीमठ के जो हालात है उसके लिए पूरी तरह से सरकार और उसकी नीतियां ही जिम्मेदार है। जोशीमठ में जिस तरह से अंधाधुंध विकास के साथ-साथ पिछले कुछ वर्षों में पर्यटकों की आमद में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है, उसके चलते निर्माण गतिविधियों और व्यावसायीकरण के चलते प्रदूषण (वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण) में बढ़ोत्तरी हुई है।
इसके साथ बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण और सड़क चौड़ीकरण गतिविधियों का इस क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। इस असर पर्यावरण संतुलन पर भी पड़ा है। आज हम लगातार कई दिनों तक लगातार बारिश देखते हैं, जबकि कई और दिन शुष्क रहते हैं। इसके अलावा अस्सी और नब्बे के दशक में जोशीमठ क्षेत्र में दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बर्फबारी एक प्रमुख विशेषता थी। लेकिन पिछले वर्षों में यह बदल गया, और कभी-कभी तो इस क्षेत्र में बर्फबारी होती ही नहीं।
जोशीमठ शहर बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी और औली जैसे धार्मिक और पर्यटन स्थलों का मुख्य पड़ाव है। जोशीमठ एक ऐतिहासिक और पौराणिक शहर भी है। जोशीमठ शहर को ज्योतिर्मठ भी कहा जाता है और यह भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है, जिनकी मूर्ति हर सर्दियों में जोशीमठ के मुख्य बद्रीनाथ मंदिर से वासुदेव मंदिर में लाई जाती है।
इसरो की ताजा रिपोर्ट बताती है कि प्राचीन नरसिंह मंदिर भी धंसाव क्षेत्र में है।वेबदुनिया से बातचीत में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वानंद कहते हैं कि जोशीमठ की आपदा पूरी तरह मानवीय आपदा है। जोशीमठ में एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ बिजली परियोजना के तहत जो सुरंग बनाई जा रही है उसके चलते आज यह पूरी स्थिति उत्पन्न हुई है। जब प्रकृति को हम छेड़ रहे है तो प्रकृति भी अपना बल दिखा रही है।
वेबदुनिया से बातचीत में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वानंद कहते हैं वह बताते है कि मठ परिसर में भी दरारें आ गई है और मठ भवन को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। हलांकि अभी हमारे मठ पर लाल निशान नहीं लगा है, लेकिन खतरे को देखते हुए परिसर में भवन चिन्हित कर लिए गए है और उनको तोड़ने के लिए अनुरोध किया गया है।